मैं शरीर का अहंकार
मैं समझ रहे हैं , वह मैं शरीर का अहंकार है। आपको जैसे ही आपका बोघ हो जाएगा ,आपका सारा शरीर का अहंकार टूट जाएगा क्योंकि आप जान चुके होंगे कि आप एक आत्मा हैं।
मनुष्य शरीर के आवरण के साथ जन्म लेता है और शरीर के आवरण में ही रहता है। और आवरण गिर जाने के बाद उसे पता चलता है - यह तो आवरण था जो अब नहीं रहा। शरीर वाहन है , आत्मा ड्राईवर ( वाहनचालक ) है। बिना वाहन के ड्राईवर आगे नहीं बढ़ सकता है । लेकिन यह भी सच है बिना ड्राईवर के गाड़ी भी आगे नहीं बढ़ सकती है। इसलिए किसको किसकी जरुरत है , यह भी जाना नहीं जा सकता है। दोनों अपने-अपने स्थान पर योग्य हैं और दोनों एक-दुसरे के पूरक हैं। इसलिए अपनी मंजिल प्राप्त करने के लिए हमें दोनों को समझना आवश्यक है। दोनों का तालमेल और दोनों का संतुलन अगर हम रख पाते हैं , तो ही मंजिल तक पहुँच सकते हैं।
जो हमारे शरीर है , साधनरूपि वाहन है। जिस प्रकार से गाड़ी का मेंटेनेन्स , रख - रखाव जरुरी होता है , ठीक उसी प्रकार से , शरीर का रख-रखाव भी अत्यंत जरुरी है। कुछ धर्मों में शरीर के रख-रखाव को , शरीर के महत्त्व को सिरे से ही नकारा दिया गया है और आत्मा पर ही जोर दिया गया है। यह भी योग्य प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि शरीर की आवश्यकता ही आत्मा को नहीं होती तो वह आत्मा शरीर को धारण ही क्यों करता ? आत्मा ने भी शरीर के महत्त्व को समझा है और इसीलिए आत्मा ने शरीर धारण किया है। और कई आत्माएँ उपयुक्त शरीर न मिलने के कारण , अनुरुप शरीर न मिलने के कारण अटकी पड़ी हैं , शरीर के लिए प्रतिक्षारत हैं ।
भाग - १ - ८०
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