सांस्कृतिक कार्यक्रम के पीछे परमपुज्य गुरुदेव का उद्देश्य

प्रश्न 12 : गुरुदेव ! तो हम देखते हैं - गुरूपूर्णिमा महाशिविर फिर चैतन्य महाशिविर में कल्चरल प्रोग्राम (सांस्कृतिक कार्यक्रम ) करते हैं और उसमें अलग-अलग नृत्य पेश करते हैं | तो गुरुदेव ये नृत्य ज्ञानी क्या ? मीन्स (मतलब) हाथ-पैर हिलाना, गर्दन हिलाना ? नृत्य यानी क्या? एक्जेक्ट आपका क्या मानना है गुरुदेव? थोड़ा मार्गदर्शन दीजिए |

स्वामीजी : नहीं, इसका करने के पीछे का दो-तीन उद्देश्य हैं |  प्रत्येक मनुष्य में कोई कला, कोई गुण विद्यमान होता है |और उस कला को, उस गुण को अपने घर से ही प्रोत्साहन मिलना आवश्यक है | तो ये चैतन्य महोत्सव हुआ, गुरुपूर्णिमा हुई, ये सब समर्पण परिवार के कार्यक्रम है | और यही सब हमारे कार्यक्रम, हमारे परिवार के सदस्यों के द्वारा आयोजित किए जाते हैं ताकि हमारे ही परिवार के सदस्यों को उनकी कला को प्रकट करने का अवसर प्राप्त हो | इसीलिए यह मंच का निर्माण किया जाता है | और सदैव जब भी किसी गुण के ऊपर, किसी कला के ऊपर गुरु की दृष्टि हो जाए तो वह गुण, वो कला हजारों गुना बढ़ जाती है| दूसरा, अाप देखो न,  जिन्होंने डांस किये या जिन्होंने डांस किया उनको पूछो तो उनको भी खूब आनंद आता है | उन्होंने कहीं पे डांस किए होंगे, वहां करना और यहां करना उसमें जमीन-आसमान का अंतर है | वो भी उस डांस को खूब एन्जॉय करते हैं और आप भी उस डांस को खूब एंजॉय करते है | वो कहां हाथ-पैर फेंक रहे हैं, वो क्या हाथ कर रहे हैं, क्या गाना गा रहे हैं | ये सारे माध्यम है | पीछे से एनर्जी तो मैं ही देते रहता हूं | तो कहने का मतलब कि गुरु के समक्ष कोई भी, कोई गायन का कार्यक्रम हो, वादन का कार्यक्रम हो..अब कल होगा न, कल दिनभर भजन हीं चलनेवाले हैं तो आप देखो न, उसके अंदर से एक ऊर्जा प्रवाहित होती है | क्या रहता है, ये सब चीजें  - नृत्य हो, गायन हो, वादन हो, ये आत्मा को प्रसन्न करती है,आत्मा को खुश करती है और जैसे ही खुश करती है तो ऑटोमेटिकली आत्मा में से चैतन्य की लहरें प्रवाहित होना चालू हो जाती है, बहना चालू हो जाती है | और उस बहने का लाभ प्रत्येक आत्मा को मिलता है | तो यहां के कोई भी कार्यक्रम...क्या नृत्य हो रहा है ? क्या वादन हो रहा है ? क्या गायन हो रहा है ? आप उधर ध्यान मत दो | आप उसके एनर्जी की तरफ, आपका सारा ध्यान उसके उर्जा की तरफ... वो कैसे नाच रहा है वो भी मत देखो | उसके नाच से आपको क्या अनुभूतियॉं हो रही है ? आपके अंदर क्या नाच रहा हैं ? आपके भीतर भी कोई नाच रहा है | आप जो स्टेज पे नाच रहा है, उसको मत देखो | आपके भीतर जो नाच रहा है, भीतर जो प्रवाह चल रहा है, भीतर जो एनर्जी चल रही है, आपका सारा ध्यान, सारा चित्त आपके भीतर होना चाहिए | बाहर देखो और भीतर अनुभव करो | ये सब कार्यक्रमों के पीछे का यही एक उद्देश होता है |

गुरुपूर्णिमा समर्पण ध्यानयोग महाशिविर - 2016

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