स्वामीजी,क्या हम गुरूलोक की यात्रा इसी जन्म में कर सकते हैं?औऱ हम उस यात्रा की तरफ अग्रसर है, उसकी पहचान क्या है ?
प्रश्न 9 : स्वामीजी,क्या हम गुरूलोक की यात्रा इसी जन्म में कर सकते हैं?औऱ हम उस यात्रा की तरफ अग्रसर है, उसकी पहचान क्या है ?
स्वामीजी : जिस प्रकार से मैं पति-पत्नी के सम्बंध के लिए यु-ट्यूब का उदाहरण देता हूँ। यु-ट्यूब मतलब 100 ग्राम अगर पानी इसमें डाला तो 50 ग्राम पानी इसमें ऑटोमेटिकली जाता है क्योंकि वो शरीर से भीतर से जुड़े हुए रहते है । ठीक उसी प्रकार से, गुरू औऱ शिष्य आत्मा के स्तर पे जुड़े हुए रहते हैं । तो जो - जो गुरू के पास में है, वो सब कुछ शिष्य को प्राप्त हो सकता है । अब जैसे मैं सिर्फ जैन मुनियों के सानिध्य में
रहा, जैन मुनियों के साथ में रहा, जबकि
जैन धर्म के ऊपर हमारी कोई चर्चा नहीं
हुई । उसके बावजूद भी जैन मुनियों के
पास जो ज्ञान था, जैन मुनियों के पास
जो नॉलेज था, वो नॉलेज ऑटोमेटिकली
मेरे में ट्रांसफर हो गया । उन्होंने मुझे सिखाया नहीं , मैंने उनसे सीखा नहीं।
क्योंकि ये जो ज्ञान है न, यह सिखाने औऱ सीखने से परे है । तो ऑटोमेटिकली
वो सब ट्रांसफर होता है। लेकिन हमको
समरस होते आना चाहिए। गुरुसे समरस
होते आना चाहिए । तो जितने हम समरस होंगे, उतने अच्छे रिज़ल्ट्स, उतने अच्छे परिणाम ऑटोमेटिकली प्राप्त होंगे । इवन, मेरा तो छोड़ो , तुम गुरूशक्तिधाम मे भी अगर बैठते हो और ध्यान करते हो,मेडिटेशन करते हो तो ऑटोमेटिकली वो स्थिति देने के लिए वो भी समर्थ है ।क्या होता है मालूम है ? कई बार न, मनुष्य का अहंकार जीवंत गुरु को मानने के लिए
तैयार नहीं रहता है। तो ऐसे लोगों ने
गुरूशक्तिधाम में जाना चाहिए । तो भी
उनको वोही परिणाम , वोही रिज़ल्ट्स,
वोही फायदे नजर आएँगे ।
मधुचैतन्य
नवम्बर-दिसम्बर 2017 पेज 28/29
रहा, जैन मुनियों के साथ में रहा, जबकि
जैन धर्म के ऊपर हमारी कोई चर्चा नहीं
हुई । उसके बावजूद भी जैन मुनियों के
पास जो ज्ञान था, जैन मुनियों के पास
जो नॉलेज था, वो नॉलेज ऑटोमेटिकली
मेरे में ट्रांसफर हो गया । उन्होंने मुझे सिखाया नहीं , मैंने उनसे सीखा नहीं।
क्योंकि ये जो ज्ञान है न, यह सिखाने औऱ सीखने से परे है । तो ऑटोमेटिकली
वो सब ट्रांसफर होता है। लेकिन हमको
समरस होते आना चाहिए। गुरुसे समरस
होते आना चाहिए । तो जितने हम समरस होंगे, उतने अच्छे रिज़ल्ट्स, उतने अच्छे परिणाम ऑटोमेटिकली प्राप्त होंगे । इवन, मेरा तो छोड़ो , तुम गुरूशक्तिधाम मे भी अगर बैठते हो और ध्यान करते हो,मेडिटेशन करते हो तो ऑटोमेटिकली वो स्थिति देने के लिए वो भी समर्थ है ।क्या होता है मालूम है ? कई बार न, मनुष्य का अहंकार जीवंत गुरु को मानने के लिए
तैयार नहीं रहता है। तो ऐसे लोगों ने
गुरूशक्तिधाम में जाना चाहिए । तो भी
उनको वोही परिणाम , वोही रिज़ल्ट्स,
वोही फायदे नजर आएँगे ।
मधुचैतन्य
नवम्बर-दिसम्बर 2017 पेज 28/29
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