समर्पण संस्कार
"एक पवित्र और शुद्घ आत्मा के द्वारा एक पवित्र और शुद्ध आत्मा पर किया गया यह एक संस्कार है। इस प्रक्रिया को घटित होने के लिए और इस संस्कार को ग्रहण करने के लिए प्रथम आत्मा होना पड़ता है। आत्मा ही इस संसार में नाशवान नहीं है। बाकी सब नाशवान हैं। जब आप इस पवित्र संस्कार को ग्रहण करते हैं और अपने भीतर विकसित करते हैं तो आप मानव से महामानव हो जाते हैं और फिर आपका शरीर तो माध्यम बन जाता है। और फिर मेरे एक सामान्य मनुष्य के माध्यम से भी २२ वर्ष में ही विश्वस्तर का कार्य हो जाता है और यह हो सकता है। इसका उदाहरण मुझे हिमालय से समाज में भेजकर 'हिमालय के गुरुओं' ने दिया है। यह केवल 'समर्पण संस्कार' से ही संभव हो सका है।"
"यह संस्कार विश्व का कोई भी मनुष्य ग्रहण कर सकता है। जो भी ग्रहण करना चाहे, 'परमात्मा' के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं। समान भाव और निःशुल्क यह 'परमात्मा' की विशेषताएं हैं।"
- सदगुरु श्री शिवकृपानंद स्वामी
समर्पण ग्रंथ
(समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।) पृष्ठ:१४
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