सहनशीलता आत्मा की शक्ती
सहनशीलता  आत्मा  की  शक्ती  है । आत्मा  जितनी  सशक्त  होगी , उतनी  ही  सहनशीलता  अधिक  होगी । मनुष्य  जैसे -जैसे  ध्यान  करता  है , वैसे -वैसे  वह  प्रकृतिमय  होते  जाता  है औऱ  प्रकृतिमय  हो  जाने  से  सहनशीलता  उसमें  स्थापित  होनी  शुरू  हो  जाती  है । औऱ  इस  सहनशीलता  के  कारण  मनुष्य  कठीण  से  कठीण  समय  में  भी  शांत  रहता  है । मनुष्य  को  सहनशीलता  एक  सशक्त  आत्मा  की  देन  है । सहनशीलता  एक  ऐसी  शक्ती  है  जो  ध्यान  करने  से  मनुष्य  के  भीतर  ही  विकसित  होती  है । प्रत्येक  मनुष्य  को  यह  स्वयं  विकसित  करनी  पड़ती  है । इसे  बाहर  प्राप्त  नही  किया  जा  सकता  है । जो  वृक्ष  सहनशील  होते  है , वे  ही  वृक्ष  बड़े  से  बड़े   तूफान  को  भी  सहन  कर  सकते  है  औऱ  बड़े  से  बड़े  तूफान  में  अपना  अस्तित्व  बचाकर  रखने  में  सफल  हो  जाते  है ।
                           *ही.का.स.योग.*
*खंड /1-पृष्ठ280*
*खंड /1-पृष्ठ280*
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