दान का महत्त्व

 एक नाशवान्  दूसरे नाशवान्  को अवश्य सुखी कर सकता है। इसीलिए विभिन्न धर्मों में दान को महत्त्व दिया गया है ताकि धन को जमाकर आप जीवन में शरीर - सुख तो प्राप्त करेंगे ही , लेकिन उसके साथ-साथ आत्मसुख भी प्राप्त करें और आत्मसुख केवल और केवल दान करके ही प्राप्त कर सकेंगे। वह दान ही आपके आत्मा को सुखी और प्रसन्न कर सकता है। इसलिए दान का आध्यात्मिक क्षेत्र में बहुत महत्त्व है कि दान कर आप आत्मसुख प्राप्त करें और आत्मसुख से ही आध्यात्मिक प्रगति संभव है।क्योंकि आत्मा सुखी होगी तो सशक्त होगी। और सशक्त होगी तो ही आध्यात्मिक साधना करेगी। आध्यात्मिक साधना करेगी तो आध्यात्मिक प्रगति होगी।
जब हम अपने से प्रश्न पूछते हैं , मैं कौन हूँ  तो भीतर से आवाज आती है , मैं एक आत्मा हूँ। और मैं एक आत्मा हूँ  का बोध होता है। तभी हमें ज्ञात होता है - जो मैं , मेरा का अहंकार मैं कर रहा था , वह शरीर का अहंकार था। मैं वास्तव में तो आत्मा है - वह आत्मा , जो है पर दिखती नहीं है ; जो शरीर का संचालन करती है , पर संचालन करते हुए दिखती नहीं है। आत्मा के सिवा इस शरीर का कोई अस्तित्व नहीं है। वह आत्मा अगर इस शरीर से निकल गई तो लोग इसे गाड़कर आएँगे या जला देंगे और शरीर को नष्ट कर देंगे।
यह शरीर सबकुछ लगता है , पर सबकुछ है नहीं। और जो सबकुछ  है , वह कुछ भी नहीं लगता है। यानी जो है , वह है नहीं। और जो नहीं है , वही सबकुछ है। हमारे शरीर से ही सारे अध्यात्म को समझ जा सकता है। एक आत्मा को समझ लें तो परमात्मा को जाना जा सकता है।

भाग - १ - ७८

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