कर्म मुक्त ध्यान प्रवचन के अंश
आज का ध्यान एक भाव की यात्रा है,यह भाव की यात्रा प्रारम्भ करने के पूर्व हमे हमारा देह भाव यही छोड़ना होगा। हमें हमारी बुद्धि यही छोड़नी होगी, क्योंकि बुद्धि की दिशा केवल और केवल बाहर की ओर होती है। जन्म से लेकर आज तक बुद्धि बाहर ही लेकर गयी। अपने आप को पहले स्थिर कर लो,सारे विचारों को इस्थिर कर लो,अपनी सम्पूर्ण एकाग्रता और ध्यान सम्पूर्ण चित्त धीरे धीरे तालु भाग पर इस्थिर कर लो,पूर्णतः तालु भाग पे चित्त स्थिर हो जाने के बाद आपको आपके तालु भाग पर हल्का सा स्पंदन महसूस होगा वो स्पंदन को महसूस करो शरीर को एकदम रिलैक्स ओर खाली कर दो।
आप महसूस करो तालु पे जो स्पंदन हो रहा है।धीरे धीरे वो स्पंदन का एहसास बढ़ रहा है। उस स्पंदन ने एक दिशा तय की है। स्पंदन हमारी ही तालु भाग पे क्लॉकवाइज आगे बढ़ रहा है। उसने बडा सर्किल सहस्त्रार पे बना दिया है।फिर अंदर का सर्किल, फिर एक अंदर का सर्किल बनाया है, और अंदर का सर्किल बनाया है, और बाद में बीचों बीच एक बिंदु पे जाके वो स्थिर हो गया है,स्थिर होकर के वो आकाश की ओर उठ रहा है।
आपके ही तालु भाग के 6 इंच ऊपर स्थिर हो गया है, अब हमारा संबंध शरीर के साथ पूरा छूट गया है। शरीर और हम में एक फासला निर्माण हो गया है।
अब हमने ये शरीर धारण क्यों किया ये विचार है ,शरीर धारण करने का कारण विचार हैं। पूर्व जन्म के विचार के कारण हमारे हाथ से कुछ बुरे कर्म घटित हो गए थे। नकारात्मक विचारों के कारण ही नकारात्मक कर्म घटित हो गए। नकारात्मक कर्म काटने के लिए ,नकारात्मक कर्म के जाल से अपने आप को मुक्त करने के लिए,हमने यह देह धारण किया था। यह देह धारण करने के बाद पूर्व जन्म के कर्म तो कट ही जाते हैं, फिर इस देह से नए कर्म निर्मित हो जाते हैं। और उन कर्मो को काटने के लिए देह धारण करना पड़ता है,और इन कर्म के चक्र में फंसकर हुम् बार बार जन्म लेते है, जब देह छूट जाती है, तब हमें यह एहसास है। तब हमें यह अनुभव होता है,की उन अनुभव से हमने यह सीखा की हमें हमारे जीवन में कोई परमात्मा जगा दे। परमात्मा का आत्मसाक्षत्कार करवा दे,तो ही इस चक्र से मुक्त हुआ जा सकता है,अब हमें कर्म से कर्म के चक्र से मुक्ति का तो मार्ग मिल गया,मुक्ति का रास्ता मिल गया, लेकिन आत्मसाक्षत्कार ग्रहण कर सकें, ऐसा शरीर नही था।
आत्मसाक्षत्कार आत्म जागृति साक्षात परमात्मा के सिवा कोई नही करा सकता।
अब परमात्मा का सानिध्य ले सकें ऐसे शरीर की ज़रूरत हुई और वो शरीर प्रदान कर सकें ऎसे माँ -बाप की ज़रूरत हुई। और वो शरीर प्रदान कर सकें ऐसे माँ बाप की खोज प्रारम्भ हुई।
ऐसे माँ बाप की खोज प्रारम्भ हुई।ऐसे माँ बाप खोजने के लिए हमें जन्मों जन्मों तक खोजना पड़ा,बड़े प्रयासों से बड़ी प्राथना से हमको इस जन्म में ऐसे माँ बाप मिले।जिनसे हमें यह तेजमय शरीर प्राप्त हुआ है, निर्मल शरीर प्राप्त हुआ है,शुद्ध शरीर प्राप्त हुआ है,आत्मसाक्षत्कार ग्रहण कर सकें ऐसा शरीर प्राप्त हुआ है।शरीर प्राप्त होने के बाद भी हमारी अंतर्मुखी यात्रा चलती रही।
फिर खोज परमात्मा के उस वर्त्तमान माध्यम की थी, जीवंत माध्यम की थी।जो मुझको मुझसे मिला दे। मुझे जगा दे,में शरीर नही आत्मा हु,यह अनुभव कर दे ,आत्मबोध करा दे,यह आत्मानुभूति कर दे,बड़े प्रयासों के बाद वो माध्यम न मिल सका,जहां प्रयास समाप्त होते हैं,वहीं प्राथना का जन्म होता है।फिर हमने प्राथना करना प्रारंभ कर दिया। प्रत्येक प्राथना हमारे चित्त को शुद्ध और पवित्र करती गयी। अनेको प्राथना के बाद हमारे जीवन में परमात्मा का जीवंत माध्यम आया।जिसके सानिध्य में हमने लंबी तपस्या की थी,और लंबी तपस्या के बाद हमें आत्मा होने का बोध हुआ। हम आत्मा होकर के, उस सामूहिकता में शामिल हो गए,जो लाखों पवित्र और शुद्ध आत्माओं की सामूहिकता थी। इस सामूहिकता में शामिल होने के बाद हमारा शरीर भाव पूरा समाप्त हो गया, लेकिन पूर्व जन्म के बुरे कर्मो का भोग अभी बाकी था।
वह भोग हम भी भोग रहे थे।लेकिन शरीर भाव न होने के कारण वह भोग की चुभन महसूस नही हो रही थी। कुछ दिनों के पश्चात वह पूर्व जन्म के कर्म भी समाप्त हो गए, हम बुरे कर्म से मुक्त हो गए। अब जीवन मे बुरे कर्म होने की संभावना समाप्त हो गयी। हमारे आस पास एक आभामंडल निर्मित हो गया जो सकारात्मक ऊर्जा वाला था।ऐसे आभामंडल में नकारात्मक ऊर्जा थी ही नही।
नकारात्मक विचार भी समाप्त हो गए,आगे एक जीवन यात्रा चल रही थी।जिस देह से अच्छे कर्म हो रहे थे, वह हुम् सदगुरु के माध्यम से परमात्मा को समर्पित कर रहे थे,धीर धीर हम जीवन के उस उच्च शिखर तक पहुचे,उस उचाई पर पुहुचे जहा देह का भाव पूर्णतः समाप्त हो गया था।
बुरे कर्म से पूर्णतः मुक्त हो चुके थे और अच्छे कर्म से भी मुक्त हो चुके थे।
जीवन में कर्ता का भाव नहीं था। ना अच्छे कर्म बचे थे ना बुरे कर्म, एक कर्म मुक्त अवस्था हमें प्राप्त हुई थी। हम कर्म के चक्कर से पूरे मुक्त हो गए थे।
आप महसूस करो तालु पे जो स्पंदन हो रहा है।धीरे धीरे वो स्पंदन का एहसास बढ़ रहा है। उस स्पंदन ने एक दिशा तय की है। स्पंदन हमारी ही तालु भाग पे क्लॉकवाइज आगे बढ़ रहा है। उसने बडा सर्किल सहस्त्रार पे बना दिया है।फिर अंदर का सर्किल, फिर एक अंदर का सर्किल बनाया है, और अंदर का सर्किल बनाया है, और बाद में बीचों बीच एक बिंदु पे जाके वो स्थिर हो गया है,स्थिर होकर के वो आकाश की ओर उठ रहा है।
आपके ही तालु भाग के 6 इंच ऊपर स्थिर हो गया है, अब हमारा संबंध शरीर के साथ पूरा छूट गया है। शरीर और हम में एक फासला निर्माण हो गया है।
अब हमने ये शरीर धारण क्यों किया ये विचार है ,शरीर धारण करने का कारण विचार हैं। पूर्व जन्म के विचार के कारण हमारे हाथ से कुछ बुरे कर्म घटित हो गए थे। नकारात्मक विचारों के कारण ही नकारात्मक कर्म घटित हो गए। नकारात्मक कर्म काटने के लिए ,नकारात्मक कर्म के जाल से अपने आप को मुक्त करने के लिए,हमने यह देह धारण किया था। यह देह धारण करने के बाद पूर्व जन्म के कर्म तो कट ही जाते हैं, फिर इस देह से नए कर्म निर्मित हो जाते हैं। और उन कर्मो को काटने के लिए देह धारण करना पड़ता है,और इन कर्म के चक्र में फंसकर हुम् बार बार जन्म लेते है, जब देह छूट जाती है, तब हमें यह एहसास है। तब हमें यह अनुभव होता है,की उन अनुभव से हमने यह सीखा की हमें हमारे जीवन में कोई परमात्मा जगा दे। परमात्मा का आत्मसाक्षत्कार करवा दे,तो ही इस चक्र से मुक्त हुआ जा सकता है,अब हमें कर्म से कर्म के चक्र से मुक्ति का तो मार्ग मिल गया,मुक्ति का रास्ता मिल गया, लेकिन आत्मसाक्षत्कार ग्रहण कर सकें, ऐसा शरीर नही था।
आत्मसाक्षत्कार आत्म जागृति साक्षात परमात्मा के सिवा कोई नही करा सकता।
अब परमात्मा का सानिध्य ले सकें ऐसे शरीर की ज़रूरत हुई और वो शरीर प्रदान कर सकें ऎसे माँ -बाप की ज़रूरत हुई। और वो शरीर प्रदान कर सकें ऐसे माँ बाप की खोज प्रारम्भ हुई।
ऐसे माँ बाप की खोज प्रारम्भ हुई।ऐसे माँ बाप खोजने के लिए हमें जन्मों जन्मों तक खोजना पड़ा,बड़े प्रयासों से बड़ी प्राथना से हमको इस जन्म में ऐसे माँ बाप मिले।जिनसे हमें यह तेजमय शरीर प्राप्त हुआ है, निर्मल शरीर प्राप्त हुआ है,शुद्ध शरीर प्राप्त हुआ है,आत्मसाक्षत्कार ग्रहण कर सकें ऐसा शरीर प्राप्त हुआ है।शरीर प्राप्त होने के बाद भी हमारी अंतर्मुखी यात्रा चलती रही।
फिर खोज परमात्मा के उस वर्त्तमान माध्यम की थी, जीवंत माध्यम की थी।जो मुझको मुझसे मिला दे। मुझे जगा दे,में शरीर नही आत्मा हु,यह अनुभव कर दे ,आत्मबोध करा दे,यह आत्मानुभूति कर दे,बड़े प्रयासों के बाद वो माध्यम न मिल सका,जहां प्रयास समाप्त होते हैं,वहीं प्राथना का जन्म होता है।फिर हमने प्राथना करना प्रारंभ कर दिया। प्रत्येक प्राथना हमारे चित्त को शुद्ध और पवित्र करती गयी। अनेको प्राथना के बाद हमारे जीवन में परमात्मा का जीवंत माध्यम आया।जिसके सानिध्य में हमने लंबी तपस्या की थी,और लंबी तपस्या के बाद हमें आत्मा होने का बोध हुआ। हम आत्मा होकर के, उस सामूहिकता में शामिल हो गए,जो लाखों पवित्र और शुद्ध आत्माओं की सामूहिकता थी। इस सामूहिकता में शामिल होने के बाद हमारा शरीर भाव पूरा समाप्त हो गया, लेकिन पूर्व जन्म के बुरे कर्मो का भोग अभी बाकी था।
वह भोग हम भी भोग रहे थे।लेकिन शरीर भाव न होने के कारण वह भोग की चुभन महसूस नही हो रही थी। कुछ दिनों के पश्चात वह पूर्व जन्म के कर्म भी समाप्त हो गए, हम बुरे कर्म से मुक्त हो गए। अब जीवन मे बुरे कर्म होने की संभावना समाप्त हो गयी। हमारे आस पास एक आभामंडल निर्मित हो गया जो सकारात्मक ऊर्जा वाला था।ऐसे आभामंडल में नकारात्मक ऊर्जा थी ही नही।
नकारात्मक विचार भी समाप्त हो गए,आगे एक जीवन यात्रा चल रही थी।जिस देह से अच्छे कर्म हो रहे थे, वह हुम् सदगुरु के माध्यम से परमात्मा को समर्पित कर रहे थे,धीर धीर हम जीवन के उस उच्च शिखर तक पहुचे,उस उचाई पर पुहुचे जहा देह का भाव पूर्णतः समाप्त हो गया था।
बुरे कर्म से पूर्णतः मुक्त हो चुके थे और अच्छे कर्म से भी मुक्त हो चुके थे।
जीवन में कर्ता का भाव नहीं था। ना अच्छे कर्म बचे थे ना बुरे कर्म, एक कर्म मुक्त अवस्था हमें प्राप्त हुई थी। हम कर्म के चक्कर से पूरे मुक्त हो गए थे।
आज हम अपने आप को एकदम हल्का महसूस कर रहे थे। क्योंकि हमने वह मुक्त अवस्था प्राप्त कर ली, जिस अवस्था को प्राप्त करने के लिए हमने जन्मो जन्मो तक प्रयास किए थे। अब कोई कारण ही नहीं बचा था कि हम नया शरीर धारण करें, अब कोई कर्म ही नहीं बचे थे जिन से मुक्त होने के लिए हम जन्म ले।
ऐसी मुक्त स्थिति हम को प्राप्त हो गई थी। आज हम को अनुभव हो रहा था,
मैं एक पवित्र आत्मा हूं मैं एक शुद्व आत्मा हूं,
मैं एक पवित्र आत्मा हूं मैं एक शुद्ध आत्मा हूं,
मैं एक पवित्र आत्मा हूं मैं एक शब्द आत्मा हूं।
ऐसी मुक्त स्थिति हम को प्राप्त हो गई थी। आज हम को अनुभव हो रहा था,
मैं एक पवित्र आत्मा हूं मैं एक शुद्व आत्मा हूं,
मैं एक पवित्र आत्मा हूं मैं एक शुद्ध आत्मा हूं,
मैं एक पवित्र आत्मा हूं मैं एक शब्द आत्मा हूं।
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