आत्मसाक्षात्कार और अनुभूति

आपने कभी किसी का उपनयन संस्कार देखा है कि नहीं मुझे मालूम नहीं। लेकिन एक बार मुझे एक उपनयन संस्कार में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ। पूरे टाइम था मैं। उस उपनयन संस्कार के अंदर चार ब्राह्मण लाए गए थे। और चारो ब्राह्मण जो भी मंत्र बोल रहे थे वो मंत्र इतने पावरफुल थे, इतने पावरफुल थे कि उससे कुंडलिनी खुद ही जागृत हो जाती थी। लेकिन वो ब्राह्मणों को पूछा कि तुम जो ये मंत्र बोल रहे हो इसका कुछ वाइब्रेशन, इसका कुछ एनर्जी, इसका कुछ एहसास तुमको हो रहा है क्या? बोले, " नहीं स्वामीजी, हमको कुछ नहीं हो रहा। हम तो जैसे सब जगह करते हैं वैसे यहां कर रहे हैं।" तो माने कर रहे हैं लेकिन उसका एहसास नहीं है वो मंत्र क्या बोल रहे हैं, मंत्र का एनर्जी, मंत्र का ऊर्जा पता ही नहीं है। क्यों पता नहीं है? अनुभूति का ज्ञान नहीं है। मैंने बोला न, केवल गीता अनपढ़ के हाथ में दे देने से गीता का ज्ञान हो जाएगा क्या? नहीं। उसके लिए पढ़ा - लीखा होना आवश्यक है। उसी प्रकार से मंत्र का बोलने से नहीं होगा। मंत्र का नॉलेज, अनुभूति का ज्ञान अगर आपको है तो उस मंत्र के वाइब्रेशनस आपको पता चलेंगे। जब उनको उनके मंत्र के अनुभूतियां बताई, उसका नॉलेज बताया और उनको मैने बोला, "ये ज्ञान, ये नॉलेज तुमको भी आएगा। ये मेरे को आ रहा है ऐसा नहीं है। लेकिन तुम पहले आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करो, ध्यान करो। ध्यान करने के बाद में तुमको ही तुम्हारे कार्य में मजा आने लगेगा। अभी जो तुम काम कर्म समजके कर रहे हो न, वो कर्म नहीं होगा। उसके अंदर तुमको आनंद प्राप्त होगा और कब कर्म हो गया पता भी नहीं चलेगा।"

समर्पण ग्रंथ
(समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।)  पृष्ठ:३७९

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