स्वामीजी, अध्यात्मिक प्रगति करने के लिए गुरुकार्य और ध्यान, दोनों में से क्या ज्यादा उचित है ?

गुरु कार्य या ध्यान
साधक 15 : स्वामीजी, अध्यात्मिक प्रगति करने के लिए गुरुकार्य और ध्यान, दोनों में से क्या ज्यादा उचित है ?

स्वामीजी : गुरुकार्य और ध्यान दोनों ही मार्ग है और दोनों से आखिर में एक ही जगह पहुंचते हैं | आखिर में, अपने आप में भाव जगाने में आप सफल होने चाहिए | जब गुरु के प्रति पूर्ण भाव लाने में अपने-आपको पूरा डुबो दो, अपने अस्तित्व को शून्य कर दो,  तब आप गुरुशक्ति से जुड़ने में सफल हो जाते हो |
     अगर गुरुकार्य करने में आपको रुचि हो तो गुरु के लिए जो भी कार्य करो, वह सब गुरु को अर्पित कर दो | जिसे ध्यान नहीं लगता हो, उसे गुरुकार्य करना चाहिए | गुरुकार्य शरीर से होता है, पर कार्य करते समय चित्त गुरु पर हो तो आखिर में गुरु से जुड़ जाओगे | गुरु के माध्यम से,आगे ऊपर का रास्ता है जो सामूहिकतामें पार करना है |
     जिस तरह किसी ऐतिहासिक स्थान पर अगर जाओगे, तो उस स्थान की सही जानकारी पाने के लिए गाईड की मदद लोगे | तो स्थान और गाइड दोनों अलग-अलग चीजें हैं | जब गाइड आपको माहिती (जानकारी) देगा, तब आपका पूरा ध्यान गाईड के शब्दों पर होगा | तब आप उस स्थान को सही मायने में जान पाओगे | परमात्मा तक पहुंचने का रास्ता गुरु द्वारा तय करना है | इसलिए आपका पूरा चित्त गुरु पर होना चाहिए | इसमें भाव महत्वपूर्ण है | ध्यान करने के लिए आपको  स्थिती की आवश्यकता है | अगर आपका चित्त नियंत्रित न हो, तो आप ध्यान नहीं कर सकते हो | जबकि कार्य करने के लिए स्थिति की आवश्यकता नहीं है | गुरुकार्य कोई भी कर सकता है |
     ध्यान चित्र से होता है जबकि कार्य शरीर से होता है | इसलिए आपको जो ठीक लगे, जो योग्य लगे,वह कर सकते हैं |

मधुचैतन्य : जनवरी,फरवरी,मार्च-2008

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