पाद - पूजन

गुरु के शरीर से एक प्रक्रिया अविरत चलती रह्ती है , वह है शिष्य के चित्त के शुद्धिकरण की प्रक्रिया । शिष्य  के चित्त की अशुद्धि गुरु सदैव ग्रहण करते ही रहता है । इसीलिए गुरु के शरीर में उस अशुद्धि के कारण गर्मी आ जाती है औऱ वह गर्मी गुरु के पैरों के तलुओं में महसूस की जा सकती है । शिष्य के चित्त को शुद्ध करने में य़ह अनायास ही आ जाती है । इसीलिए शिष्य का य़ह कर्तव्य है की उसके कारण आई हुई गर्मी व दोष दूर करने में वह अपने गुरु की सहायता करे । इसिलिए गुरुपुर्णिमा में गुरु के पाद - पूजन का कार्यक्रम किया जाता है ।

ही .का .स .योग . - 1 

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