वसुधैव कुटुंबकम्

    गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर ,हमारे पूर्वजों ने जो एक  स्वप्न देखा था, हमारे पूर्वजों ने    हमारे सामने आनेवालेा विश्र्    की एक परिकल्पना प्रस्तुत की थी, ' वसुधैव कुटुंबकम् ' , उस ' वसुधैव कुटुंबकम् ' की   कल्पना को फिर से एक बार याद करने का, फिर से एक बार नए सिरे से , एक नए दृष्टिकोण से , एक नए
आयाम से सोचने का प्रयास,  अगर आज हम करेंगे तो हमारे उन  पूर्वगूरूओं को सही अर्थ में गुरुदक्षिणा होंगी ।
' वसुधैव कुटुंबकम् ' यानी सारा विश्व , विश्व में रहनेवाला प्रतेक मनुष्य उसमें शामिल हैं ।                        

प.पू.स्वामीजी
२००९,पुष्कर(अजमेर)

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