चैतन्यपूर्ण शरीर का सानिध्य
कई बार कई संत इस धरती पर
अवतरित होते हैं और किसी
स्थानविशेष को पवित्र करते हैं ।
उनके कारण उस स्थान की स्पंदन
की शक्त्ति बढ़ जाती है । उन संतो
के सानिध्य के कारण उस स्थानविशेष
का प्रभाव बढ़ जाता है ।
" उनके लिए कोई भूमि अच्छी या
ख़राब नहीं होती। वे भूमि की अच्छी या
ख़राब स्थिति नहीं देखते हैं। वे समूची
भूमि की शक्त्ति से जुड़े होते हैं। इसी
कारण संत किसी भी भूमि पर निवास
करें, किसी भी स्थान पर बैठे, किसी भी
स्थान को उनके चैतन्यपूर्ण शरीर का
सानिध्य मिले, वह स्थानविशेष पवित्र
हो जाता है क्योंकि उनके सानिध्य में
प्राप्त चैतन्य उस स्थान पर सदैव बना
ही रहता है।वह संत की जीवन-समाप्ति
के बाद भी सैकड़ों सालों तक अनुभूतियाँ
प्रदान करते ही रहता हैं।
स्थानविशेष को पवित्र करते हैं ।
उनके कारण उस स्थान की स्पंदन
की शक्त्ति बढ़ जाती है । उन संतो
के सानिध्य के कारण उस स्थानविशेष
का प्रभाव बढ़ जाता है ।
" उनके लिए कोई भूमि अच्छी या
ख़राब नहीं होती। वे भूमि की अच्छी या
ख़राब स्थिति नहीं देखते हैं। वे समूची
भूमि की शक्त्ति से जुड़े होते हैं। इसी
कारण संत किसी भी भूमि पर निवास
करें, किसी भी स्थान पर बैठे, किसी भी
स्थान को उनके चैतन्यपूर्ण शरीर का
सानिध्य मिले, वह स्थानविशेष पवित्र
हो जाता है क्योंकि उनके सानिध्य में
प्राप्त चैतन्य उस स्थान पर सदैव बना
ही रहता है।वह संत की जीवन-समाप्ति
के बाद भी सैकड़ों सालों तक अनुभूतियाँ
प्रदान करते ही रहता हैं।
हि. का. स.योग 1⃣ पेज 70/71
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