'समर्पण' शब्द 'ध्यान' शब्द से जुड़ने से 'समर्पण ध्यान' नाम हुआ | 'समर्पण ध्यान' यह नाम से गुरुशक्तियों का क्या संकेत है ? यह नाम गुरुकृपा में कैसे मिला ?

प्रश्न 10:
'समर्पण' शब्द 'ध्यान' शब्द से जुड़ने से 'समर्पण ध्यान' नाम हुआ | 'समर्पण ध्यान' यह नाम से गुरुशक्तियों का क्या संकेत है ? यह नाम गुरुकृपा में कैसे मिला ?

स्वामीजी :
दो शब्द है | एक है 'समर्पण' , दूसरा है 'ध्यान' |  एक है रास्ता,  एक है मंजिल | समर्पण रास्ता है | समर्पण ईश्वरीय अनुभूति का मार्ग है और ध्यान वह मंजिल है, वह शिखर है, जहां तक सबको पहुंचने का है | तो उस शिखर तक किस मार्ग से पहुंचा जा सकता है ? ध्यान की स्थिति तक कैसे पहुंचा जा सकता है ? उसी का मार्ग, उसी का रास्ता समर्पण है | तो गुरू इन दो शब्दों के द्वारा एक मैसेज देना चाहते हैं,  एक संदेश देना चाहते हैं कि अगर ध्यान की अवस्था प्राप्त करनी हो,  ध्यान की स्थिति प्राप्त करनी हो तो समर्पित हो जाओ | समर्पित होने के बाद में आपका अस्तित्व शून्य हो जाता है और 'समर्पण'  का अर्थ ही है जिसका कोई अस्तित्व नहीं है | जो शून्य है | तो जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है,  ध्यान तो खुद-ब-खुद लग जाता है | मंजिल तो चल कर पास आएगी,  आपको मंजिल तक नहीं पहुंचना पड़ेगा | लेकिन आपको उस मार्ग पे चलना पड़ेगा |  उस मार्ग पे पथिक बनना पड़ेगा | अगर आप आपके जीवन में समर्पण को अपनाते हैं तो ध्यान खुद ब खुद आपके जीवन में स्थापित हो जाएगा |

मधुचैतन्य  जनवरी फरवरी-मार्च 2011

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