समर्पण  ध्यान  की  साधना  का  उपयोग  आपको  जीवन  मे  किसके  लिए  करना  है ,वह  आपके  ही  ऊपर  निर्भर  है ।आज  इतना  अवश्य  बताता  हूँ  की  आप  जब  समस्याग्रस्त  रहते  हो ,वह  समय  आध्यात्मिक  प्रगति  का  नही  होता  है ।आपकि  आध्यात्मिक  प्रगति  तभी  हो  सकती  है  जब  आप  सभी  समस्याओं  से  मुक्त  रहते  हो  क्योंकि  लंगड़ा  मनुष्य  कभी  दौड़  नही  सकता ।इसलिए  जब  स्वस्थ  हो ,तभी  आध्यात्म  की  दौड़  प्रारंभ  करो ।

बाबा स्वामी

     श्री  सदगुरु  के  सानिध्य  में  जाते  है , जैसे  उनका  दर्शन  करते  है , हमारी  भी  भीतर  की  यात्रा  प्रारंभ  हो  जाती  है । अब  प्रश्न  ये  आता  है --अगर  हम  आत्मा  है  तो  भीतर  कौन  जाता  है ? भीतर  शरीर  का  अहंकार  जाता  है ।  अहंकार  का  भाव  धीरे - धीरे  धीरे -धीरे   अंदर  जाता  है  और  जितना  अंदर  जाएगा  उतना  ही  ध्यान  अच्छा  लगेगा ।
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  आपका
बाबा स्वामी


 कई जन्मों के पश्चात मनुष्य को समझ आती है कि धन में, भौतिक सुखों में , शाश्वत सुख नहीं है | फिर कहीं वो शाश्वत सुख की खोज में जन्म लेती है और फिर किसी सद्गुरु की कृपा में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करती है | उसे "मैं एक आत्मा हूँ " यह बोध होता है , जैसे जैसे वह जागृत होती है ,वह सारे भौतिक जगत से विमुख होने लगती है और फिर उसे केवल आत्मज्ञान प्राप्त करने में ही आनंद मिलता है और फिर वह ध्यानसाधना करके अपने जीवनकाल में ही मोक्ष की एक स्तिथि प्राप्त करती है | 
हि.स.यो.१/३३६
प्रकृति  का  नियम  है  :--

आप   वह  जीवन  ही जीते  है  जो  जीवन  जीने  की  आप  इच्छा  रखते  है । तो  प्रकृति  में  फैली  विश्वचेतना  वह  जीवन  का  निर्माण  करने  में  लग  जाती  है ।...........
वैश्विक  चेतना  का  नियम  है  :---  वह  कार्यरत  सदैव  रहती  है , बस  उसकी  दिशा  और  दशा  निश्चित  नही  होती  है । उसे  हमारा  चित्त  दिशा  प्रदान  करता  है । और  चित्त  जो  दिशा  प्रदान  करता  है , वह  उस  दिशा  में  बहना  प्रारंभ  कर  देती  है ।

ही..स..योग.[ ५-- १९४/ ९५ ]


स्वच्छ व पवित्र शरीर में एक स्वच्छ और पवित्र आत्मा वास करती है। हमें शरीर को विकारों से बचने के लिए अपने आपको आत्मा समझना चाहिए। हमें शरीर में रहना है , पर आत्मा बनकर रहना है। ऐसा बनकर अगर हम शरीर में रह सके , तो हम इस शरीर के माध्यम से अपने जीवन में अपनी आत्मा को मोक्ष-प्राप्ति तक अवश्य पहुँचा पाएँगे। और प्रत्येक आत्मा का अंतिम लक्ष्य मोक्ष पाना है। उसी के लिए आत्मा ने यह शरीर का आवरण ओढ़ा हुआ है , यह बात हमें याद रखनी है।
एक दिन गुरुदेव मुझे बाहर , पूर्व दिशा को ओर ले गए। उस ओर वह बड़ा जलप्रपात था। उस मुख्य जलप्रपात के आसपास बहुत से छोटे - छोटे जलप्रपात थे। वहाँ पर सुबह - सुबह खूब पक्षी जमा थे। सुबह का वातावरण होने से पक्षी खूब चहक रहे थे। विभिन्न पक्षी विभिन्न प्रकार की आवाजें निकाल रहे थे। गुरुदेव ने कहा , उस झाड़ पर देखो , वह चिड़ियों का समूह क्या बातें कर रहा है। समझने का प्रयास करो। मैंने देखा तो सैकड़ो की तादाद में वहाँ पर चिड़ियाँ जमा थीं और वे बहुत जोर से आवाजें कर रही थीं। गुरुदेव ने कहा , प्रथम तो वे शोरगुल बेकार में कर रही हैं , ऐसा सोचना छोड़ दो और यह सोचना शुरु करो - वे बेकार शोरगुल नहीं कर रही , वे कुछ बातें कर रही हैं , जे मुझे समझ में नहीं आ रही , इसलिए मुझे उनकी भाषा शोरगुल लग रही है।
अब वे अपनी भाषा में क्या कह रही हैं , वज समझने का प्रयास करो। वे क्या आवाज निकलती हैं , उस पर एकाग्रता करो तो मालूम होगा  -  वे एक ही आवाज कई बार निकाल रही हैं। एक ही आवाज कई बार निकाल रही हैं ,

भाग - १ - ८२

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