समाधी

१.  हम संसार में अनेक 'गुरुओं' के दर्शन करते हैं। किसी का कुछ कहना हमें अच्छा लगता है, किसी का कुछ कहना हमें अच्छा लगता है। किसी की कुछ बातें अच्छी लगती हैं, किसी की कुछ बातें अच्छी लगती हैं।
२.  संसार में ऐसा कोई गुरु नहीं होता जो संपूर्ण अच्छा लगता हो। ऐसा कोई गुरु नहीं है जिसकी सब बातें हमें अच्छी लगती ही हो।
३.  हमें गुरु संपूर्ण अच्छा इसलिए नहीं लगता क्योंकि इस संसार में ऐसा कोई गुरु है ही नहीं तो हमें मिलेगा कैसे ?
४.  इसे इस प्रकार समझें               - जीवंत गुरु आया तो साथ उसका शरीर भी आया और बिना दोष का कोई शरीर ही नहीं होता है। इसलिए कोई ऐसा गुरु नहीं है जो हमें संपूर्ण अच्छा लगें।
५.  हम अपनी बुद्धि के स्तर पर प्रत्येक गुरु को तौलते रहते हैं। यह अच्छा है या यह अच्छा है ?  यह सही कह रहा है या यह सही कह रहा है? हम जाँच रहे हैं। यह जाँच ऐसी होती है, जैसे दूसरी कक्षा का लडका १२ वीं कक्षा के लडके की जाँच करे।
६.  जीवंत गुरु आपके भ्रम को तोडेगा। आपको नींद से जगाएगा। तो जो नींद से जगाए, ऐसा व्यक्ति भला किसे अच्छा लगेगा ?
७.  आपकी कल्पना ऐसी होती है - गुरु ऐसा हो जो हमें हमारी गलतियाँ नहीं बताए, जो  हमें सोने दे और  जब हमें संकट आए, तभी हमारी मदद को आए। जैसे वह गुरु नहीं, आपका नौकर हो।
८.  नौकर तो नौकरी के कारण आपसे बँधा है। आप उसे तनख्वाह देते हो। गुरु आपसे बँधा नहीं होता। वह मुक्त होता है। गुरु को बाँधा नहीं जा सकता। हमें ही गुरु से बँधना पडता है।
९.  तो बंधन किसे पसंद है ? कोई भी किसी गुरु से बँधना नहीं चाहेगा। और किसी की ऐसी उच्च स्थिति नहीं जो गुरु को बाँध सकें  किंतु गुरुसान्निध्य से आप उससे कब.बँध गए, आपको पता भी नहीं चलेगा।
१०.  अब सवाल आता है, ऐसे गुरु का सान्निध्य कहाँ मिलेगा ? ऐसा गुरु कहाँ प्राप्त होगा ? फिर आपकी खोज शुरु हो जाती है।

आध्यात्मिक सत्य, पृष्ठ. १४८-१४९

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