गुरूदक्षिणा में अकेलापन
"...स्वामीजी क्या कह रहे हैं, क्या बताना चाहते हैं | क्यों नहीं जाने का वहाँ ? क्यों रोक रहे हैं ? सोचो न ! अंदर से आ रहे संकेतों को समझो, उधर ध्यान दो | और उसको निगलेक्ट (उपेक्षा) मत करो, उसको टाल करके आगे मत बढ़ो | और मैं सारा तमाशा देखता रहता हूँ | क्योंकि मैं क्या कर सकता हूँ ? इसलिए इस गुरूपुर्णिमा में गुरुदक्षिणा में वह अकेलापन दे दो, वह 'मैं' दे दो, वह अहंकार दे दो | देखो, 'मैं' का अहंकार रहेगा न, तो ही अकेलेपन का एकाकीपन महसूस करेंगे | अगर आपके अंदर बिल्कुल भी अहंकार नहीं है, 'मैं' का भाव ही नहीं है, तो आप पूर्ण समर्पित है, आपका खुद का कोई अलग अस्तित्व ही नहीं है | अलग अस्तित्व नहीं है, तो अलग डर भी नहीं है, अलग भय भी नहीं है, अलग अकेलापन भी नहीं है | आप भले ही एकांत में बैठे रहो, अकेले बैठे रहो, आपको नहीं लगेगा - आप अकेले है, आपको लगेगा, "अहाहा !गुरूपूर्णिमा में आनंद ले रहा हूँ |" क्योंकि जहाँ गुरु, वहाँ गुरूपुर्णिमा | गुरू का सान्निध्य अनुभव करोगे ! इसलिए आज की गुरूपूर्णिमा में सभी साधक अपना अकेलापन दे दें, अपना 'मैं' दे दें कि आज से भी कभी महसूस नहीं करें कि वे अकेले हैं, वे कमजोर है, वे वीक हैं |आप आपके अंदर एक आत्मविश्वास का निर्माण करो | आप जो चाहो, वह कर सकते हो | आप चाहो, तो सारी दुनिया बदलके रख सकते हो ! अरे, मैं तो आपका गुलाम हूँ | आप जो इच्छा करो, वह मुझे पूर्ण करनी पड़ेगी न ! आप इच्छा ही नहीं करते | ऐसी कंजूस सरीखी, इतनी, इतनी-सी इच्छा करते हैं, फिर उतनी, उतनी-सी पूर्ण करते हैं | वह कहावत है न, "जितनी चादर हो, उतने पैर पसारो |" यह कहावत मेरे बारे में उल्टी पड़ती है | आप पहले पैर पसार लो, चद्दर मैं ओढा दूँगा | जितना फैलाडा करना है, उतना फैलाडा कर लो | वह चादर कहाँ से आएगी, उसकी चिंता मत करो | अपना बाप चादर बना रहा है ऊपर ! इसलिए एहसास करो - किसके साथ में हो, किसके सानिध्य में हो | वह एहसास आपको तब हो सकेगा, जब भीतर देखना शुरू करोगे, भीतर की अनुभूति प्राप्त करोगे, भीतर का एहसास प्राप्त करोगे | और थोड़ा समय अपने अकेले के लिए दो | और आज से अपने-आपको अकेला मत समझो | और गुरुदक्षिणा में आपका 'मैं' आज मुझे समर्पित करो | इसी शुद्ध इच्छा के साथ, नमस्कार !"
गुरुपुर्णिमा-2009, पुष्कर,अजमेर |
मधुचैतन्य :- जुलाई-अगस्त-सितंबर 2009
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