मनुष्य के जीवन मे चित्त की स्थिति एक तराजू जैसी होती है ।

मनुष्य  के  जीवन  मे  चित्त  की  स्थिति  एक  तराजू  जैसी  होती  है । वह  स्वयं  कुछ  नही  करता  पर  जो  होता  है  उसका  परिणाम  वह  प्रदान  करता  है । चित्त  के  तराजू  मे  एक  ओर  जो  वजन  के  मापदंड  होते  है  वह  छोर  आत्मा  का  होता  है । आप  जितना  भीतर  चित्त  रखोगे , वह  बाँट  वजन  के  बढ़ते  जाएँगे । और  दूसरी  ओर  शरीर  होता  है । आप  आपके  शरीर  की  ओर  शरीर  की  इच्छाओं  की  ओर , शरीर  की  आवश्यकताओंकि  ओर  शरीर  की  अहंकार  की  ओर  जितना  अधिक  ध्यान  दोगे  उतना  ही  आपके  चित्त  रूपी  तराजू  का  दूसरा  पाला  बाहर  की  ओर  होना  प्रारंभ  होगा । और  फिर  ध्यान  कर  अपने  चित्त  को  भीतर  की  ओर  मोडना  होगा । और  यही  प्रक्रीया  मनुष्य  के  जन्म  से  म्रुत्त्यु  तक चलते  ही  रहती  है । और  उसी  संतुलन  की  स्थिति  बनाए  रखना  और  उसी  संतुलन  की  स्थिति  मे  म्रुत्यु  आना  ही  "'मोक्ष "' है ।.

ही..का..स..योग [ ५ ]

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