सुबह-सुबह ही आँख लग पाई और आँख खुलने पर जो नजारा देखा वह तो बड़ा सुंदर था!

🌷🌷जै बाबा स्वामी🌷🌷
                                          (73)
सुबह-सुबह ही आँख लग पाई और   आँख  खुलने पर जो नजारा देखा वह तो बड़ा सुंदर था! हाथियों के चिंघाड़ने से मेरी नींद खुली थी। सामने देखा तो नदी के दूसरे किनारे पर हाथियों का एक बड़ा समूह था। जीवन में इतने हाथी, इतने करीब से मैंने पहली बार देखे थे। तभी पूर्ण प्रकाश नहीं हुआ था, लेकिन फिर भी जो प्रकाश था,उससे यह जाना कि उनकी संख्या बहुत बड़ी थी। सारे जंगली हाथी थे जो शरीर  से  ही महाकाय थे, शक्ति से भी बलवान थे। उनके साथ -साथ  उनके छोटे-छोटे बच्चे भी थे। जैसे-जैसे प्रकाश बढ़ता गया, मुझे सामनेवाला दृशय स्पष्ट दिखने लग गया। उन हाथियों  के बच्चों
में एक छोटी हाथीनि थी जो उस दल की  सबसे छोटी सदस्य थी। उसको ठीक से चलना भी नही आ रहा था।  वह चलते-चलते बार-बार गिर पड़ती थी। उसकी माँ और साथ की एक वयस्क हथिनी उसे सूँड से सहारा देकर
खड़ा करती थी। उसे पानी में जाने की जल्दी थी पर चलते ही नहीं आ रहा था और हड़बड़ में बार -बार गिर रही थी। सभी हाथी उसे घेरकर चल रहे थे मानो सारे हाथीदल  का ध्यान उस पर ही था। बकी हाथियों के बच्चे बराबर चल रहे थे। धीरे-धीरे हाथियों का सारा दल नदी के पानी में पहुँच गया था। वे सारे नदी के किनारे के पास ही डेरा डाले हुए थे। वे उस पार  ही रहते हैं, इस पर ही मेरा ध्यान था क्योंकि इस  पार आते  मुझे मेरी जगह बदलनी पड़ सकती थी।
क्योंकि जंगल के अनुभवों से मैंने एक बात सीखी थी- इन जंगली जानवरों का भी अपना एक ऑरा (आभामंडल) होता है, एक दायरा होता है। प्रायः उसमें वे किसी अन्य प्राणी की उपस्थिति सहन  नहीं करते हैं क्योंकि उससे उन्हें असुरक्षा लगती है।
हि.स.यो-४            
पुष्ट-८६

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