हम गुरु के पास भी कोई 'अपनी इच्छा ' लेकर गए तो
हम गुरु के पास भी कोई 'अपनी इच्छा ' लेकर गए तो हो सकता है , गुरु की सकारत्मक शक्ति से वह पूर्ण भी हो जाए लिकन अगर हमारी अपनी इच्छा भौतिक स्वरूप की होगी तो हमारी प्रगति भौतिक जगत की ओर हो जाएगी | इससे हमारी प्रगति तो होगी लेकिन गलत दिशा में होगी और भौतिक जगत में तो समाधान कहीं है ही नहीं ! आप सद्गुरु के दरबार में क्या माँगते हो, इसी पर आपकी प्रगति निर्भर करती है क्योंकि उस माँगने पर आपकी दिशा तय होती है , गुरु तो उस दिशा में केवल धकेल देते हैं | गुरु का कार्य है धक्का देना | अब, हम जिस ओर अपना मुँह रखेंगे , वह उस ओर धक्का देंगे ! इसलिए, सद्गुरु के सानिध्य में हमारा मुँह किस ओर है , यह बड़ा महत्वपूर्ण होता है क्योंकि हम भविष्य में उस ओर पहुँचने वाले होते हैं | हम ही हमारी दिशा तय करते हैं , धक्का देने का कार्य सद्गुरु का होता है | और कई बार, किस दिशा में आगे बढ़ना है , यह हमें पता नहीं होता और सद्गुरु से गलत दिशा में धक्का माँगकर हम कुएँ में गिर जाते हैं | ऐसी स्थिति से अच्छा होगा कि आप सद्गुरु से प्रार्थना करें - *आपकी इच्छानुसार हो, आपकी इच्छा हो तो हो और न हो तो न हो | आपको सबकुछ उनकी इच्छा पर ही छोड़ देना चाहिए |* हि.स.यो-४| पृष्ठ-३४३
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