जिवंत गुरु

आप  किसी  जिवंत  गुरु  के  सानिध्य  में  जाइए , वो  स्वयं  अँतरमुखि  रहता  है , वो  अपनी  ही  मस्ती  में  मस्त  रहता  है । जैसे  आप  उसका  दर्शन  करते  है , दर्शन  करने  के  बाद  में  आपको  अच्छा  लगता   है । और  एक  आकर्षण  बार -बार  उसकी  ओर  खींच  के  हमको  लेके  जाता  है । बार -बार  इच्छा  होती  है  कि  उनका  दर्शन   करना  चाहिए , वहाँ  जाना  चाहिए । वह  भी  निमित्य  है । जिवंत  गुरु  भी  निमित्य  है । जिवंत  गुरु  के  कारण  कुछ  नहीँ  होता । जिवंत  गुरु  अँतर्मुखि  स्थिति  में  रहता  है , उसके  पास  जाकर  के  हम  भी  अँतर्मुखि  हो  जाते  है । और  जैसे  ही  हम  अँतर्मुखि  होते  है , हमको  अच्छा  लगता  है । अच्छा  लगता  है  यानी ? मूर्ति  के  सामने  दर्शन  से  अच्छा  नहीँ  लगता , अच्छा   इसलिए  लगता है  क्योंकि  उसके  सामने  हम  आत्मा  के  करीब  पहुँच  जाते  है । समाधिस्त  गुरु  के  पास  जा  करके  भी  अच्छा  नहीँ  लगता , अच्छा  लगता है  क्योंकि  उसके  निमित्य  से , उसके  माध्यम  से  हम  आत्मा  तक  पहुँच  जाते  है । जिवंत  गुरु  के  सामने  हम  जाते  है  वहाँ  पे  भी  वौहि  प्रक्रिया  घटित  होती  है । जिवंत  गुरु  के  माध्यम  से  हम  आत्मा  तक  पहुँच  जाते  है । यानी  जिवंत  गुरु  भी  एक  माध्यम  है  जिसके  माध्यम  से  हम  अँतर्मुखि  होते  है ।
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परम पूज्य स्वामीजी
" महाध्यान "
१ जनवरी  २०१७
।।जय बाबा स्वामी ।।
श्री शिवकृपानंद स्वामी

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