पाना अलग बात होती है और दूसरों को देने के लिए पाना अलग बात होती है।
_*मनुष्य का जीवन में पाना अलग बात होती है और दूसरों को देने के लिए पाना अलग बात होती है। तुम्हारे हाथ से तभी बँट सकता है, जब पाने के पूर्व ही तुमने देने का ही संकल्प लिया हो। जीवन में वह व्यक्ति ही पा सकता है हो उसके लिए योग्य हो। तभी वह पा सकता है। लेकिन दूसरों को देने की दृष्टि से जो मनुष्य पाता है, वह उसकी योग्यता से अधिक गुना पाता है। क्यूँकि दूसरो को देने के भाव के कारण उसका चित्त बहुत विशाल हो जाता है, तो स्वाभाविक रूप से उसकी योग्यता भी कई गुना बढ़ जाती है।*_
_* जय बाबा स्वामी*_
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_*HSY 2 pg 79-80*_
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