फिर सभी मुनियोंने मीलकर,

फिर सभी मुनियोंने मीलकर, सामूहीक रूप से जाकर हिमालय के ही एक वयोवृध्ध मुनि से, जो अपनी तपस्या में लीन थे, प्रार्थना की, "आप ही नीचे जाने की और नीचे जाकर यह ध्यान का मार्ग समाज को बताने की क्षमता रखते हैं। और आप चाहें तो यह कर सकते हैं।"
लेकिन अपनी तपस्या से पूर्णत्व प्राप्त कर चुके मुनि से यह प्रार्थना करना ठीक वैसा ही था, जैसे इंन्द्रदेव ने दधीचि रूषि से प्रार्थना की थी, "आप देह त्याग करे, मुझे आपके शरीर की अस्थियों से वज्र बनाना है।" वैसी ही यह प्रार्थना थी।
उनकी प्रार्थना स्वीकार कर उन वयोवृध्ध मुनि ने अपनी तपस्या को छोडकर केवल यह संकल्प के साथ प्राणत्याग किया कि केवल यह ग्यान देने की इच्छा से ही मैं देह धारण करुँ। और बादमें उन वयोवृध्ध मुनि ने अपनी सारी शकि्त्तयाँ अपने शिष्य श्री शिवबाबा को प्रदान कर दी थीं और कहा था, "जब मैं अगला जन्म लूँगा, तब, लाखों मनुष्यों की सामूहीकता को अनुभूति करा सकूँ, ऐसी शकि्त्तयां तपस्या से मैंने प्राप्त की हैं, वे मुझे मेरे अगले जन्म में सौंपना। इन शिक्तयों को सँभालकर रखने का गुरूकार्य आज से मैं तुम्हें सौंप रहा हूँ।"
वे वयोवृध्ध मुनि ही अपने अगले जन्म में माध्यम बने और श्री शिवबाबा ने वही, उनकी आध्यात्मिक  शक्तियों की धरोहर उन्हें सौंपी।

श्री बाबास्वामी (" समग्र योग ") पृष्ठ क्रमांक - ९५, ९६, ९७

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