Gurupurnima -2008
A small excerpt from Gurupurnima -2008.
श्री गुरू उवाच........ ... ----- बारिश ⛈-- ,
उन गुरूजनो का आगमन और उनकी कृपादृष्टि का प्रतीक था ।
* पाद्यपुजन का महत्व बताते हुए पूज्य गुरदेव ने कहा, " गुरूपूर्णिमा एेसा दिन होता है, जिस दिन आपके गुरू अपने गुरूजनों के साथ होते है वो और गुरुपूजा का इससे बेहतर समय कोई नहीं हो सकता । * सद्गुरू से ग्रहण करने के लिए आपको स्वयं को गुरु बनना पड़ेगा । गुरू से मेरा आशय -- आत्मा -- से है । * ' समर्पण ध्यान ' का यह तो उषाः काल है , सूर्योदय तो मेरे जीवन के बाद होगा ।
* समर्पण ध्यान मे सामूहिकता में रहने के 3 मार्ग हैं ।
1) गुरूकार्य -- गुरूकार्य एक ऐसा मार्ग है जो आप किसी भी स्थिति मे कर सकते हो ।
2) गुरूमंत्र का जाप । इस 45 दिन के अनुष्ठान के बाद यह ( गुरूमंत्र ) पूर्णतः सिध्द हो गया है ।
3) ध्यान ।
जीवन में कोई अच्छा लक्ष्य , जीवन मे कोई एक अच्छा कार्य , कोई अच्छा कर्म , कुछ भी जो आपको अच्छा लगे , उसको पकड़कर जीवन मे आगे बढ़ो । गुरु ढूँढ़ते रहता है -- कौन से साधक में कौन --सा अच्छा गुण है जिस पर अगर चित्त रखा जाए तो वह (साधक ) विकसित हो सकता है । गुरु वह मूर्तिकार है , जो मूर्तिकार प्रत्येक पत्थर मे परमात्मा की अनुभूति करता है , परमात्मा के दर्शन करता है ।
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