परमात्मा सर्वत्र है । बस आवश्यकता है उस स्थिति में जाने की

परमात्मा   सर्वत्र   है । बस   आवश्यकता   है   उस   स्थिति   में   जाने   की   जिससे   उसका   सर्वत्र   अनुभव   हो । और   यह   तभी   हो   सकता    है   जब   उससे   समरसता   स्थापित   हो   जाए ।  इसलिए   भक्तिमार्ग    जो   "परमात्मा बाहर है "  उसकी   भक्ति   करने   की   प्रेरणा   देता   है   और   दुसरा  ,गहन   ध्यान   मार्ग ,  जो   "परमात्मा भीतर   है " की   प्रेरणा   देता   है ,  इन   दोनो   के   बीच   में   समर्पण   ध्यान   है ।  इसे   देखे   तो   इस   में   सबकी   अछाइयोँ   का   संगम   है   और   अति   में   कुछ   भी   नही   है ।  सब   मध्यमार्ग   में   है ।
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"आध्यात्मिक सत्य "

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