सदगुरु रूपी आत्मा जब तक इस शरीर मे है , तब -तक ही इस शरीर का महत्व है ।
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शरिर के विकार भी नही है , शरीर की समस्याएँ भी नही है । वह सदगुरु रूपी आत्मा जब तक इस शरीर मे है , तब -तक ही इस शरीर का महत्व है । वह चली जाने के बाद २४ घंटे तक भी इस मृत देह को कोई नही रखेगा । युद्धसमाप्ति के बाद जैसे ही श्रीकृष्ण ने रथ का त्याग किया , रथ जलकर नष्ट हो गया । इससे यह संदेश मिलता है की शरीररूपी रथ पर जब -तक आत्मा रहती है , तभी -तक रथ चलता है । आत्मा का शरीर रूपी रथ छोड़ने पर शरीर को भी जलाकर नष्ट किया जाता है । हमारे जीवन ही हमारी आत्मा के कारण ही है । नही तो हम मुर्दा कहलाएँगे , शव कहलाएँगे , मृत देह कहलाएँगे । जिस शरीर को हम इतना महत्व देते है , वह तो कुछ है ही नही । जो कुछ है , वह तो "' आत्मा "' ही है ।......
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ही .का .स .योग
भाग :- ५
पन्ना २३१/ ३२
🙏जय बाबा स्वामी 🙏
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