गुरु के प्रति जितना श्रद्धा भाव रखोगे

गुरु  के  प्रति  जितना  श्रद्धा  भाव रखोगे , मूर्ति  के  प्रति  जितना  श्रद्धा भाव  रखोगे, समाधिस्थल  के  प्रति  जितना  श्रद्धा भाव  रखोगे  उतना ...तुम  उसके  ऊपर  नही  उपकार  कर  रहे  हो । समाधी  के  ऊपर  उपकार  नही  कर  रहे  हो , जिवंत  गुरु  पे  उपकार  नही  कर  रहे  हो , तुम  उस  देवता  के  ऊपर  उपकार  नही  कर  रहे  हो । तुम  श्रद्धा भाव  रखकरके  अपना  ही  आईना , अपना  ही  मिरर , अपना  ही  ग्लास  साफ  कर  रहे  हो , स्वच्छ  कर  रहे  हो । जितना  स्वच्छ  रखोगे , जितना  साफ  रखोगे  उतना  ही  आपको  आपका   चेहरा  जादा  स्पष्ट  नजर  आएगा । तो  जितनी  श्रद्धा  रखोगे  ,जितना  समर्पण  रखोगे  उतना  ही  भीतर, भीतर , भीतर ,भीतर , भीतर , भीतर  उतरते  चले  जाओगे । वो  एक  माध्यम  है  जिसके  माध्यम  से  आपकी  अँतर्मुखि  यात्रा  प्रारंभ  होती  है ।
महाध्यान -ज -२०१७

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