आई
कभी जेष्ठ माह की धूप जिंदगी ,
कभी आषाढ की जलधारा जिंदगी ।
तितलियों के पंखों सी कोमल है जिंदगी ,
वज्र सी कठोर भी होती है जिंदगी ।
हर रंग दिखाए हर मौसम में खिलाए ,
हम [ देह ] शिशु और वो हमारी माँ है जिंदगी ।
तितलियों के पंखों सी कोमल है जिंदगी ,
वज्र सी कठोर भी होती है जिंदगी ।
हर रंग दिखाए हर मौसम में खिलाए ,
हम [ देह ] शिशु और वो हमारी माँ है जिंदगी ।
[ जीवन , कधी ज्येष्ठातल्या उन्हासारख तर कधी आषाढातल्या जलधारेसारख . फुलपाखरांच्या पंखासारख नाजुक जीवन आणि कधी वज्रासारख कठोर जीवन , प्रत्तेक रंग दाखवत , प्रत्तेक ऋतूत फूलवत . आपण [ देह ] बालक आणि आपली आई म्हणजे जीवन ]
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परम पूज्या गुरुमाँ
" आई '' भाग [ २ ]
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परम पूज्या गुरुमाँ
" आई '' भाग [ २ ]
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