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Showing posts from 2017

मोक्ष की इच्छा करने से ही मोक्ष मिल सकता है क्या?

आज के युग में मनुष्य के विचारों में भ्रम की स्थिति है।आजकल भ्रम सतत पैदा किया जा रहा है। अब वही होता रहेगा। " ' मोक्ष ' पाना पुस्तकों में इतना कठिन बताया गया है,भले ही पुस्तकें सालों पुरानी हों ,तो मोक्ष की इच्छा करने से ही मोक्ष मिल सकता है क्या?ऐसा करने से ही मोक्ष मिलता तो सभी लोग मोक्ष पा लेते!" ऐसा भ्रम मन में रखने से वह भ्रम मोक्ष की इच्छा को अभिव्यक्त भी नहीं करने देगा। ऐसे तो आत्मसाक्षात्कार भी कभी माँगने से मिलता था क्या? नहीं!सारा जीवन तपस्या करते थे तो भी नहीं मिलता था। लेकिन आज मिल सकेगा क्योंकि उचित समय और उचित माध्यम आज समाज में है।  यह समय की आवश्यकता है,यह समय के अनुसार घटित हुआ एक विशिष्ट योग है। इसीलिए माध्यम का निर्माण गुरुशक्तियों ने किया है। अब कुछ भ्रम के जाल में फँस    जाएँगे और कुछ सोचेंगे," चलो, माँगकर देख ही लें " तो जो सोचेंगे,वे रह जाएँगे और जो माँगेंगे, वे पाएँगे। अब सभी को तो मोक्ष पाने की बुध्दि नहीं हो सकती है क्योंकि वह होना भी पूर्वजन्म के कर्मों के कारण ही होता है। मैं कर भी क्या सकता हूँ?केवल अपनी शुध्द इच्छा को बनाए रखकर

मनुष्य ५०% देव है और ५०% दानव है।

मनुष्य ५०% देव है और ५०% दानव है। यानी हमारे में दोनों का ही अंश विधमान होता है। यानी हम जिनकी संगत में रहते हैं , वे गुण हमारे बढ़ जाते हैं। और हम किस संगत में रहते हैं, उस पर ही हमारा भविष्य तय होता है कि हम भविष्य में देव बनेंगे या दानव।  इसीलिए अच्छी संगत करो। भाग ६ - ८४

मजिल

      मेरे कारण आप अपनी मंजिल तक पहुँचे ,ऐसा कभी मत समझना । रास्ता तो अपनि जगह् पर स्थित था ,वह थोड़े आपके घर आपको लेने आया ।       आपका ही मजिल पर पहूँचने क़ा समय आ गया था ।इसीलिए आप मंजिल पर पहुँचनेवाले रास्ते पर स्वयं चलकर आए हो ,रास्ता तो बस आपकी प्रतीक्षा कर रहा था । बाबा स्वामी आध्यात्मिक सत्य           

प्रत्येक मनुष्य की सर्वोच्च,शुद्धतम इच्छा,जो कि मोक्ष पाना है

उस दिन लग रहा था--प्रत्येक मनुष्य की सर्वोच्च,शुद्धतम इच्छा,जो कि मोक्ष पाना है, वह पूर्ण हो, ऐसी शुध्द इच्छा रखना तो सबसे बड़ी इच्छा है। इससे अधिक तो कुछ हो ही नहीं सकता है। मोक्ष देना तो केवल परमात्मा का कार्य है।तो यह देने की इच्छा मुझे अनायास ही परमात्मा का माध्यम बना देगी।और इसी बात को जानकर प्रत्येक गुरु ने अपना सर्वस्व इस शरीररूपी बर्तन में डाला है।प्रत्येक मनुष्य के जन्म का उद्देश इस मोक्ष देने की इच्छा से पूर्ण होगा। बाकी सारी इच्छाएँ, उसकी इच्छाएँ नहीं,उसके शरीर की आवश्यकताएँ हैं।अब यह बात कितनी आत्माएँ समझ पाएँगी और कितनी आत्माएँ शारीरिक आवश्यकताओं को छोड़कर  अपनी शुध्द इच्छा को व्यक्त करेंगी,यह सब उनकी आध्यात्मिक स्थिति पर निर्भर करेगा। यह उनका अपना,निजी क्षेत्र होगा,मुझे अपना कार्य करना होगा। गंगा नदी अपने स्थान पर बहती रहती है। जिसको प्यास लगती है,वह घाट पर जाकर पी लेता है। महत्वपूर्ण है प्यास,वह न लगी तो गंगा का पानी भी बेकार लगेगा। प्रश्न प्यास का है,उसका लगना तो शरीर के ऊपर निर्भर है,वह शरीर का क्षेत्र है। वैसे ही,मोक्ष की इच्छा जागृत  होना आत्मा की सर्वोच्च स्थिति है,उस

शरीरभाव

हम शरीरभाव कितना भी बठाएँ तो भी शरीर का आंत हो सकता है , शरीर की आवश्यकताओं का नहीं। और शरीर जो प्राप्त करना चाहता है, वह सब सुविधाएँ हैं। उसका शरीर को आराम मिलेगा लेकिन सुख नहीं। सुख तो आत्मा कस आनंद है। वह शारीरक आराम करके कैसे प्राप्त हो सकता है ? इसीलिए इस अज्ञान को दूर करने के लिए आत्मज्ञान का प्रचार-प्रसार करने की योजना है। और इस आत्मज्ञान के क्षेत्र में कोई देश की सीमा नहीं है। धर्म , जाति , भाषा , लिग की कोई भी सीमा नहीं है। यह समूचे मानव जाति की ही समस्या है और वह प्रचार-प्रसार उस स्तर पर जाकर ही करना होगा। धर्मों के माध्यम से इस क्षेत्र में आंशिक प्रयास हुआ है। तो जहाँ धर्म आया , वहाँ सीमा आ जाती है। क्योंकि सभी धर्म आखिर कहते क्या हैं ? - अच्छी बातें करो और बुरी बातें मत करो। लेकिन यही ज्ञान मनुष्य को भीतर से ही प्राप्त हो जाए तो यह ज्ञान बाहर से देने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। भाग ६- ८३/८४

अपेक्षा रहित गहन ध्यान अनुष्ठान

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श्री शिवकृपानंद स्वामी संदेश दिसम्बर २०१७ : H. H. Shivkrupanand SwamiJi's Message December 2017

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समर्पण ध्यान

    शरीर के सारे प्रयास छोड़ देना, अपने आपको सद्गुरु के माध्यम से परमात्मा को संपूर्ण समर्पित कर देना ही समर्पण ध्यान है । .. . . . . . . . . . . . आत्मा की "माँ "   बाबा स्वामी                    [आध्यात्मिक सत्य ]

भाव

        हमारे भीतर क़ा भाव चित्त को पवित्र और शुद्ध करता है और शुद्ध चित्त ही हमे सद्गुरु क़ा सानिध्य प्रदान करता है । और सद्गुरु क़ा सानिध्य मिल जाने के बाद ध्यान खुद -ब -खुद लग जाता है । . . . . . . . . . . . . परमकृपालु बाबास्वामी          [आध्यात्मिक सत्य ]

आत्मा सदैव अकेली ही सफर करती रहती है |

प्रत्येक आत्मा इस जगत में अकेली ही आती है और इसी प्रकार अकेली ही सफर करती है | आत्मा सदैव अकेली ही सफर करती रहती है | वह कभी किसी के साथ नहीं होती है | जो साथ होता है, वह शरीर होता है | शरीर के ही सब भोग हैं , शरीर के ही सब रिश्ते हैं | शरीर भी नाशवान है | इसीलिए इस शरीर के रिश्ते भी नाशवान होते हैं | कभी नए रिश्ते बनते हैं, कभी पुराने रिश्ते छूट जाते हैं | कई पुराने रिश्तेदार साथ छोड़कर  आगे चले जाते हैं | कई नए रिश्तेदार जीवन में आ जाते हैं | सब रिश्तों की धर्मशाला चलती ही रहती है | शरीर से बनाए गए रिश्ते शरीर के समान ही नाशवान होते हैं | मनुष्य के सब रिश्ते अशाश्वत होते हैं | आत्मा का एक ही रिश्ता शाश्वत होता है, वह रिश्ता है परमात्मा का |क्योंकि परमात्मा से ही आत्मा का निर्माण हुआ है | हिमालय समर्पण योग -१ पृष्ठ-१६७

चैतन्य की सबसे बड़ी विशेषता

* यह अच्छा लगना ही चैतन्य की सबसे बड़ी विशेषता होती है। जब हमारी आत्मा को अच्छा लगता है तो हमें भी अच्छा लगता है। * * बाबा स्वामी * * HSY 5 pg 421*

गहन ध्यान अनुष्ठान 2012

आज से 'गहन ध्यान अनुष्ठान 'का प्रारम्भ हूंआ हे । गुरूशक्तिया तो सदेव हमारे साथ ही होती हे । लेकिन हमें उसका कभी एहसास नहीं होता हे। वह बोहत पवित्र एव शुध्द होती हे । ओर हमारा चित ' सदेव ' ओर ' सतत ' शुध्द स्थिति में नहीं होता हे । ओर ईसी लीये गुरुशक्तीया साथा होने पर भी अनुभव नहीं होती हे । गुरुशक्तियों का शुध्द ओर पवित्र ' एहसास ' का ' सानिध्य ' सदेव ' ओर सतत अनुभव हो ईसी के लिये यह ' गहन ध्यान अनुष्ठान ' का आयोजन गुरुशक्तीयों ने कीया हे ।लेकिन उसके लिए  हम भी अपने चित को ' शुध्द 'व ' पवित्र ' रखना होगा । ओर वह तभी रहेगा जब आप 45 दीन के अनुष्ठान में दुसरो में चित नहीं डालेगें पुराने विचार नहीं करेंगे ' भविष्य की चिंता नहीं करेंगें । इन 45दिन में आपका ध्यान केवल ओर केवल गुरुचरण पर  ही होगा । ओर ' सतत ' ओर सदेव होगा । ।            बाबा स्वामी 6/1/2012 4:00Am

ઝૂલો પણ આપણા જીવન જેવો જ છે.

ઝૂલો પણ આપણા જીવન જેવો જ છે.આપણે આપણા જીવનમાં માત્ર ને માત્ર વિચારોને કારણે જન્મ લઈએ છીએ. તમને આશ્ચર્ય થશે, પણ ફક્ત વિચાર....વિચારોને કારણે જન્મ થયો છે! વિચારોને કારણે જન્મ થયો એટલે??? વિચારોને કારણે આપણી આંદર ભાવ જન્મયો, ભાવ જન્મ્યો ભાવ દ્વારા કર્મ ઘટિત થયું અને કર્મ ઘટિત થયું તો પછી સારું કર્મ કર્યું, ખરાબ કર્મ કર્યું, કંઈક ને કંઈક કર્મ કર્યું અને જેવું કર્મ કર્યું, કર્મ કર્યા બાદ તે કર્મને ભોગવવા માટે બીજો જન્મ લેવો પડ્યો.અને જ્યારે બીજો જન્મ લીધો, સારા કર્મો કર્યાં,સારા કર્મોના ભોગ ભોગવવા માટે જન્મ લેવો પડ્યો. ખરાબ કર્મો કર્યાં, ખરાબ કર્મોના ભોગ ભોગવા માટે જન્મ લેવો પડ્યો.બરાબર આવી જ રીતે, એ જે ઝૂલાવાળો છે ને, ઝૂલાવાળો પરમાત્મા છે, એ આપણને કર્મો કપાવવાં માટે ધક્કો મારે છે.ઘક્કો માર્યા બાદ આપણે કર્મો કાપતાં જઈએ છીએ..કાપતાં જઈએ છીએ..અહિંયા સુધી પહોંચીએ છીએ અને અહીં આવ્યા બાદ નીચે આવીએ છીએ. પાછા કર્મો બાંધતાં જઈએ છીએ, નીચે આવીએ છીએ . અને નીચે આવીને વળી ત્યાં!! જેટલા કર્મો કાપવાં આપણે જન્મ લીધો હતો તેટલા જ કર્મો ફરી આપણે તૈયાર લીધા.અને તે જ કર્મોએ આપણને  બીજો જન્મ લેવાની પડયો. .(&quo

दूसरों के कल्याण के लिए

*अपनी आवश्यकता से अधिक जीवन में जो भी प्राप्त होता है वह सदैव दूसरों के कल्याण के लिए ही होता है। * * बाबा स्वामी * *HSY 5 pg 443*

मोक्ष ध्यान की सर्वोच्च अवस्था

मैंने जीवन में मोक्ष का ज्ञान-मोक्ष की स्थिति प्रदान करने की शुध्द इच्छा की थी।मोक्ष ध्यान की सर्वोच्च अवस्था है।उसे बाँटने की शुध्द इच्छा सर्वोत्तम इच्छा है।प्रत्येक मनुष्य जीवन का एक ही लक्ष्य है--मोक्ष पाना। यह प्रत्येक मनुष्य की अंतिम इच्छा है।अब, प्रत्येक मनुष्य की यह अंतिम , सर्वोत्तम इच्छा पूर्ण हो,यह शुध्द इच्छा रखने के कारण ही श्री शिवबाबा ने प्रथम मुझे तीन दिनों तक समाधि की अवस्था में रखते हुए मोक्ष की स्थिति दी ताकि वह स्थिति मैं प्रत्येक आत्मा को बाँट सकूँ जो उसे मेरे माध्यम से पाना चाहती है।फिर पाने वाली आत्मा कोई भी हो,उसका शरीर किसी भी रंग का हो,किसी भी देश का हो,किसी भी धर्म का हो,किसी भी जाति का हो, किसी भी लिंग का हो,उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।वह मोक्ष पाने की शुध्द इच्छा रखने वाली आत्मा रहेगी,बस उसी में उसकी सारी योग्यताएँ होंगी।प्रत्येक धर्म का अंतिम लक्ष्य एक ही है,वह है मोक्ष को पाना। मोक्ष ध्यान की चरम अवस्ता है जिसे पाना प्रत्येक मनुष्य जीवन का अधिकार है।यह चरम अवस्था उस प्रत्येक आत्मा को मिलनी चाहिए जो उसे पाना चाहती हो।संसार की सारी उपासनापध्दतियाँ इसी अंतिम लक्

मनुष्य को सुधारने का एक ही मार्ग है- आत्मजागृति

" आत्मा गुरु हो जाए तो मनुष्य को बाहरी तौर पर ग्यान देने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी | मनुष्य को सुधारने का एक ही मार्ग है- आत्मजागृति | क्योंकि उसके बिना सब व्यर्थ जान पड़ता है | मनुष्य ने मनुष्य के सुधार के लिए सामाजिक, आर्थिक कानून बनाए हैं, नियम बनाए हैं लेकिन इन नियमों की सबसे बड़ी कमजोरी है, ये मनुष्य ने बनाए हैं | मनुष्य के ध्वारा बनाए गए कानून से बचने का मार्ग मनुष्य निकाल ही लेता है | इसलिए जब तक मनुष्य स्वयं सुधरना न चाहे , उसे कोई नियम नहीं सुधार सकता है | मनुष्य के ध्वारा बनाए गए कानून मनुष्य को सुधारने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, आत्मसुधार की आवश्यकता है | सदैव तो प्रत्येक मनुष्य पर ध्यान नहीं रखा जा सकता है, केवल उसकी आत्मा ही उस पर सतत ध्यान रख सकती है | आत्मा की प्रगति के बिना सारी प्रगति व्यर्थ है | वह सारी प्रगति नई समस्याओं को जन्म देगी | स्वयं की आत्मा को गुरु बनाओ, यह आध्यात्मिक प्रगति का एकमात्र मार्ग है | हि.स.यो-४ पृष्ठ क्रमांक-३४७ " the soul becomes the guru, the outer man typically require increasing not fall | man the same way-Ātmajāgr̥ti | because w

आत्मा अपने जीवनकाल में अपने पूर्वजन्म के माध्यम को ही मानती रहती हैं।

आत्मा एक जीवन में जिस माध्यम को जान जाती है, उसे उस जीवन में मान नहीं पाती। और अगले जीवन में उसे मान पाती है, लेकिन अगले जन्म तक देर हो चुकी होती है। फिर अगले जन्म में जो माध्यम सामने आता है, उसे जानती तो है, पर मानती नहीं है, मानती अगले जन्म में है। यानि परमात्मा जिस गति से अपने माध्यम बदलता रहता है, उस गति के साथ साथ आत्मा नहीं चल पाती हैं। इसलिए आत्मा अपने जीवनकाल में अपने पूर्वजन्म के माध्यम को ही मानती रहती हैं। पर वह माध्यम इस जन्म में दूर हो जाता है। वह माध्यम इस जन्म में कोई काम का नहीं होता है। यानि परमात्मा जिस गति से माध्यम बदलता है, उसके साथ साथ आत्मा नहीं चल पाती है। और यही कारण है कि आत्मा आज के परमात्मा को नहीं मान पाती हैं। वह मानेगी, तो वह कल का परमात्मा ही होगा। लोग जो गलती करते हैं, वह गलती मुझे नहीं करनी है। मुझे इसी जीवन में इसी जीवन का परमात्मा का जीवंत माध्यम खोजना है, तभी आत्मा को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो सकता है और आत्मा इस शरीर के भाव से मुक्त हो सकती है। मोक्ष तो जीते-जी पाना होता है। मैं शरीर नहीं हूँ, मैं एक पवित्र आत्मा हूँ, यह ज्ञान अपने जीवनकाल में ही

मनुष्य के शरीर क़ा जन्म ही आत्मा के जन्म के लिए होता है ।

मनुष्य के शरीर क़ा जन्म ही आत्मा के जन्म के लिए होता है । लेकिन इन दो शब्दों के बीच कई जन्मों क़ा अंतराल होता है । क्योंकि शरीर के कई जन्मों के बाद आत्मा क़ा जन्म होता है । मनुष्य क़ा जन्म वह रास्ता है जो आत्मा के जन्म तक पहुचता है । . . . . . . . . . . परमपूज्य स्वामीजी          [आध्यात्मिक सत्य]

गुरुशक्तियों के सानिध्य

गुरुशक्तियों के सानिध्य में तो विचार ही पूर्णतः बंद हो जाते है । :-बाबा स्वामी [आध्यात्मिक सत्य ]

गुरुकार्य नई मंगलमूर्तियों के माध्यम से आगे बढ़ेगा।

श्री मंगलमूर्तियों की योजना बनाई गई। आगे का गुरुकार्य नई मंगलमूर्तियों के माध्यम से आगे बढ़ेगा। ये विश्व में एक प्रकार का संतुलन कायम करेगी जो संतुलन विश्व में शांति लाएगा। इस प्रकार से गुरुशक्तियों की विश्वशांति के प्रयास की योजना है। और यह गुरुकार्य भी उसी निश्चित योजना के तहत ही हो रहा है। और यह सब संभव होगा आत्मज्ञान के प्रचार-प्रसार से। भाग ६ - ८२/८३

सान्निध्य

*सभी पुण्य आत्माओं को मेरा नमस्कार ....* *आज से 'गहन ध्यान अनुष्ठान' का प्रारंभ हुआ है। गुरूशक्तियाँ तो सदैव हमारे साथ ही होती हैं। लेकिन हमें उसका कभी एहसास नहीं होता है। वह बहुत पवित्र एवं शुद्ध होती हैं। और हमारा चित्त 'सदैव' और 'सतत' शुद्ध स्थिति में नहीं होता है। और इसी लिए गुरूशक्तियाँ साथ होने पर भी अनुभव नहीं होती है।* *गुरूशक्तियों का शुद्ध और पवित्र 'एहसास' का 'सान्निध्य' 'सदैव' और 'सतत्' अनुभव हो , इसी के लिए यह 'गहन ध्यान अनुष्ठान' का आयोजन गुरूशक्तियों ने किया है। लेकिन उसके लिए हमें भी अपने चित्त को 'शुद्ध' व 'पवित्र' रखना होगा। और वह तभी रहेगा जब आप ४५ दिन के अनुष्ठान में दूसरों में चित्त नहीं डालेंगे , 'पुराने विचार' नहीं करेंगे, भविष्य की 'चिंता' नहीं करेंगे। इन ४५दिनों में आपका ध्यान केवल 'गुरूचरण' पर ही होगा। और 'सतत' और 'सदैव' होगा।* *'सद्गुरू' आपके हृदय के द्वार पर खड़ा है। बस आपका हृदय का द्वार खोल कर अनुभव करो। तभी आप इस गहन ध्यान अनु