परमात्ममय शरीर

यानी यह समझ ले , जो भी मनुष्य अपने शरीर में रहते हुए शरीर का अस्तित्व खो दे तो वह शरीर स्वयं परमात्ममय हो जाता है और जो परमात्ममय हो जाता है , वह तो उस आनंद में ही दुब जाता है। लेकिन बाहर से देखनेवालों को वह परमात्मा-सा लगने लग जाता है और वे उस माध्यम को ही  परमात्मा कहने लग जाते है

भाग - ६ -- ८०

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