आत्मा को ही गुरु बनाओ
आप,
अपने पूण्य कर्मों के कारण मेरे तक पहुंचे हो ।
अब वे समाप्त हो गये है ।
अब फिर हम जीवन में फिर मिलेंगे या नहीं,
इसलिए कहता हूं
अपनी आत्मा को ही गुरु बनाओ तो गुरु के रूप में मैं आपके भीतर ही रहुंगा ।
जब चाहो,
तब आप मुझसे मिल सकते हो ।
मुझ तक पहुंचना बहुत बड़ा कठीण है क्योंकि मैं शरीर नहीं हु ।
मैंने शरीर धारण किया है ।
इसलिए आज पहुंच ही गए हो तो जीवन के इस रहस्य को जान लो और आत्मा के अधीन जीवन जीना प्रारंभ करो ।
यह सब एकदम नहीं होगा ।
यह कोई चमत्कार नहीं होगा ।
आज तो केवल मैंने आपके जीवन को एक नई दिशा दी है ।
अब अगर इसी दिशा से आप चले तो वहा अपने इसी जीवन में पहुंचोगे, जिस स्थिति को मुक्त अवस्था या 'मोक्ष' कहते हैं ।
मैंने तो आपको सही दिशा बताने का कार्य किया है। अब मेरा कार्य तो यहां समाप्त होता है।
अब आज से आपका कार्य प्रारंभ होगा।
श्रद्धेय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी
हि.स.यो ( 6 ) / पेज नं.48.
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