शरीरभाव
हम शरीरभाव कितना भी बठाएँ तो भी शरीर का आंत हो सकता है , शरीर की आवश्यकताओं का नहीं। और शरीर जो प्राप्त करना चाहता है, वह सब सुविधाएँ हैं। उसका शरीर को आराम मिलेगा लेकिन सुख नहीं। सुख तो आत्मा कस आनंद है। वह शारीरक आराम करके कैसे प्राप्त हो सकता है ? इसीलिए इस अज्ञान को दूर करने के लिए आत्मज्ञान का प्रचार-प्रसार करने की योजना है। और इस आत्मज्ञान के क्षेत्र में कोई देश की सीमा नहीं है। धर्म , जाति , भाषा , लिग की कोई भी सीमा नहीं है। यह समूचे मानव जाति की ही समस्या है और वह प्रचार-प्रसार उस स्तर पर जाकर ही करना होगा। धर्मों के माध्यम से इस क्षेत्र में आंशिक प्रयास हुआ है। तो जहाँ धर्म आया , वहाँ सीमा आ जाती है। क्योंकि सभी धर्म आखिर कहते क्या हैं ? - अच्छी बातें करो और बुरी बातें मत करो। लेकिन यही ज्ञान मनुष्य को भीतर से ही प्राप्त हो जाए तो यह ज्ञान बाहर से देने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी।
भाग ६- ८३/८४
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