प्रकृति का अपना एक चक्र
"प्रकृति का अपना एक चक्र है और उस चक्र के अंतर्गत ही सबकुछ प्राकृतिक रूप से होता है | बनाना और बिगाड़ना दोनों ही कार्य प्रकृति करती रहती है | वास्तव में बिगड़ता कुछ भी नहीं , बिगड़ना यानि फिर से घड़ना है | सारी प्रक्रिया ही सृजनात्मक है ,एक ही दिशा में है ,पर हम उस चक्र की गति से पीछे चलते हैं ,इसलिए हमें लगता है की प्रकृति विनाश कर रही है | -- हमारी अज्ञानता से हमे लगता है की विनाश हो रहा है | वास्तव में यह पुनर्निर्माण की ही शुरुआत होती है | प्रकृति का अपना एक चक्र है, अपनी एक लय है ,अपनी एक गति है और यह सब एक संतुलन के साथ होता ही रहता है |
सारे जीवजंतु भी इस प्रकृति के चक्र के तहत ही रहते हैं | इसमें से हम हमारे स्वार्थ के लिए कुछ कम या अधिक करने का प्रयास करेंगे तो वह प्रकृति के बिच हस्तक्षेप ही होगा |हमारे मन में केवल मनुष्य ही नहीं ,जीव जंतुओं के प्रति भी सद्भावना होनी चाहिए |
मनुष्य सब प्राणियों में अधिक बुद्धिमान प्राणी है | इसलिए मनुष्य का नैतिक दायित्व है की बाकी सभी प्राणियों को संभाले और उन्हें भी विक्सित होने में मदद करे | प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना मनुष्य के लिए आवश्यक है |
प्रत्येक जीव जंतु को जीने का उतना ही अधिकार है जितना कि मनुष्य को है | क्योंकि किसी भी जीव जंतु का निर्माण मनुष्य नहीं कर सकता है , तो किसी भी जीव जंतु को मार डालने का या नष्ट करने का अधिकार भी मनुष्य को नहीं है | किसी को मार डालना प्रकृति के नियम के विरुद्ध है , फिर चाहे वह जीव जंतु ही क्यों न हो |"
हि.स.यो.३/७७
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