प्रकाश का प्रभाव सारे ही वातावरण पर
इसी कारण , उसे देखते भी नहीं आ रहा था और देखने की भी इच्छा हो रही थी क्योंकि देखना अच्छा लग रहा था और उस प्रकाश का प्रभाव सारे ही वातावरण पर था। मैं हॉल में आना भी चाहती थी, फिर भी न आ पाई जबकि आपने हॉल में आकर बैठने को कल कहा था लेकिन में हॉल में नहीं आ पाई थी और थोड़ी देर देखना के बाद के लगा, वह प्रभाव बढ़ते ही जा रहा है और मैं स्वयं उस प्रभाव में आ गई और मेरा ही ध्यान लग गया जबकि मैं ध्यान करना नहीं चाह रही थी। मुझे उस दृश्य का ही आकर्षण था , मैं वह दृश्य ही देखना चाह थी । लेकिन मेरा ध्यान कब लग गया , इसका मुझे ही पता नहीं चला और मैं एक गहरे ध्यान की अवस्था में चली गई। ऐसा ध्यान क्यों लग गया वह मालूम नहीं पड़ा ।
हि. का. स. यो. भाग ६ - ७७/७८
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