आत्मसाक्षात्कार एक दूसरा जन्म
"मनुष्य के शरीर का जन्म ही आत्मा के जन्म के लिए होता है l लेकिन इन दो जन्मों के बीच कई जन्मों का अंतराल होता है l क्योंकि शरीर के कई जन्मों के बाद आत्मा का जन्म होता है l मनुष्य का जन्म वह रास्ता है जो आत्मा के जन्म तक पहुंचता है l जब तक आत्मा के जन्म की स्थिति नहीं बनती है, आत्मा का जन्म नहीं होता है l यह कह सकते हैं की शरीर तो फल का छिलका है l वह उतरे बिना भीतर का आत्मारूपी फल प्रगट नहीं होता है l
शरीर को जन्म देने वाली माँ होती है l ठीक इसी प्रकार से आत्मा को जन्म देने वाली माँ नहीं मिलती, आत्मा का जन्म नहीं होता है l "सदगुरु" आत्मा को जन्म देने वाली माँ है, जिस प्रकार जीते-जी माँ की क़द्र बच्चा नहीं जानता, ठीक वैसे ही आत्मा को जन्म देने वाली माँ "सदगुरु" की जीते-जी क़द्र नहीं होती है l
जिस प्रकार शरीर को जन्म देने वाली माँ केवल एक ही हो सकती है, ठीक उसी प्रकार आत्मा को जन्म देने वाली माँ भी एक ही होती है l सदगुरु आत्मा को जन्म देने वाली माँ है l इसीलिए उसे "गुरुमाऊली" कहा गया है याने आत्मा की माँ l"
सदगुरु श्रीशिवकृपानंद स्वामीजी
"प्रथम ४५ दिवसीय गहन ध्यान अनुष्ठान
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