देने की शुध्द इच्छा रखो

इसलिए तब ऐसा लग रहा था--आज जीवन में जो अनुभव हो रहा है,यह भी लोगों में बाँटूँगा।उनसे कहूँगा--आप पाने की तो सोचों  ही मत क्योंकि पाने की इच्छा की तो नाभि चक्र जकड़ जाएगा और अतृप्त जागेगी।आप तो केवल और केवल देने की सोचो।आप देने की शुध्द इच्छा रखो तो आपको जीवन में इतना मिलेगा जो आपके जीवन में,आपकी देने की क्षमता से कई गुना अधिक होगा। जीवन में कुछ भी पाने की मत सोचो क्योंकि ऐसा सोचने से हमारा आभामण्डल संकुचित हो जाता है और जो हम पाना चाहते हैं,वह मिलता ही नहीं है और नहीं मिला,यह जानकर जो हम दुःखी होते हैं सो अलग।जीवन का सारा सुख देने में ही है। यह देने का भाव आपके भीतर आत्मसुख का अनुभव कराता है। और भले आपने वास्तव में नहीं भी दिया हो तो भी देने का भाव  आत्मसुख तो प्रदान करता है।
मैं सोच रहा था--मैंने कभी किसी से प्रेम की अपेक्षा नहीं की, सदैव सभी में  प्रेम बाँटने की इच्छा की तो प्रेम मिलता चला गया। मेरे पास धन न होते हुए भी धन
बाँटने की इच्छा की तो धन मिलत गया। मैंने जो भी बाँटने की इच्छा की,वह प्रथम मुझे ही मिला है। मोक्ष का ज्ञान भी बाँटने की इच्छा कर रहा हूँ और इसीलिए गुरुकार्य का प्रारंभ ही श्री शिवबाबा ने मोक्ष देकर किया है। उस दिन लगा, परमात्मा दयालु है। जो परोसता है, उसका पेट तो परोसने से ही भर जाता है। ...

हि.स.यो-४                  
पु-४२२

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