मोक्ष विमान

सभी पुण्यआत्माओं को मेरा नमस्कार...

मेरे जीवन का यह एक अनुभव रहा है कि हमें क्या बनना हैं , यह हम क्या सोचते है , इस पर ही निर्भर होता है | हम अपने- आपके बारे मे क्या सोचते है , हम अपने- आपको क्या समझते हैं । हम अपने- आपको जो समझते हैं , वैसा ही हम अपने- आपको मानने लग जाते हैं | बचपन से ही मैने अपने आपको एक पवित्र आत्मा माना , एक शुद्ध आत्मा माना और जीवन ने मुझे वैसा ही बनाया | यह मेरा निजी अनुभव है | प्रत्येक आत्मा पर पूर्वजन्म के अच्छे और बुरे संस्कार होते हैं | इन बुरे प्रभावो के आवरणों से अपनी आत्मा को मुक्त करना होता है ।

जिस प्रकार हमने हमारे घर के  दरवाजे-खिड़कियाँ बंद करके रखे तो दरवाजे की दरार से सूर्य के थोड़े-से प्रकाश ने भीतर प्रवेश किया | लेकिन वास्तव में सूर्य का प्रकाश थोड़ा सा था क्या ? नही | सूर्यप्रकाश तो बहुत अधिक था लेकिन हमारे दरवाजे बंद होने के कारण हमारे घर में थोड़ा-सा पहुंचा ।  ठीक वैसे ही , आत्मा ही परमात्मा हैं । आत्मा परमात्मा से अलग नही हैं | लेकिन हम अपने-आपको बंद दरवाजे में आत्मा के रूप मे ही परमात्मा जान सकते हैं | पर हम जिस आत्मा को जानते है , उसका ही विशाल रुप परमात्मा है । आत्मा के इन्ही आवरणों को हमें हटाना पड़ता है । हमारे घर के दरवाजे जो हमने अंदर से बंद कर रखे है , वह हमें स्वयं ही खोलने होंगे । उन्हे खोलना, न खोलना हमारे ही हाथ में है | हम खोलेंगे तो ही वे खुलेंगे | अपने-आपको एक पवित्र आत्मा मानना उसी की और एक पहला कदम है | हम अपने-आपको एक पवित्र आत्मा  मानेंगे तो हमारी आत्मा वह पवित्रता ग्रहण करेगी और पवित्र आत्मा ही सशक्त आत्मा होती है । आत्मा सशक्त हो जाने पर वह आपके समचे शरीर पर अपना नियंत्रण कर लेगी और वही आपकी 'गुरु' हो जायेगी । और जिवन में वही आपको मार्गदर्शन करेगी – क्या करना चाहिए और क्या नही करना चाहिए । और यही तो धर्म है | सभी 'धर्मो' का सार यही है ।

आपकी आत्मा को आप पवित्र करते जायेंगे तो एक स्तर तक पवित्र हो जाने के बाद आपकी आत्मा के साथ जो पूर्वजन्म के कर्मो का प्रभाव होगा ,  उससे मुक्त होगी और बाद में आत्मा सशक्त होना प्रारंभ हो जाएगी | और आत्मा सशक्त होने पर , क्या करना चाहिए , उसका मार्गदर्शन भी वह करेगी | वह आपके चित्त को भी शुद्ध करेगी, और बाहरी, आसपास के बुरे  प्रभाव से उसे वह सुरक्षित भी रहेगी । आपके चित्त को  कभी मैला नहीं होने देगी | आपके चित्त में कभी किसी के प्रति नफरत ,  घृणा , ईर्ष्या का निर्माण ही नहीं होने देगी | आपका चित्त सदैव एक सफेद चादर जैसा स्वच्छ रहेगा | आपकी आत्मा आपको एक सिलाई मशीन जैसा बना देगी जो सदैव जोडने का ही कार्य करती है | उससे कैंची का कार्य कभी नहीं होगा | आप कैची का कार्य करना भी चाहो तो भी नही होगा । आपका विश्वास सभी  पर होगा | क्योंकि आप एक विश्वास से भरे होंगे और यही कारण है , आप सभी पर विश्वास करेंगे | आप सभी से प्रेम करेंगे क्योंकि प्रेम करना आपका स्वभाव हो जाएगा | आपके भितर की मनुष्यता जागृत हो जाएगी | आप एक नन्हे से बालक जैसे अबोध हो जाएंगे | आप जीवन के संपूर्ण समाधान को प्राप्त करेंगे । आपको आपके जीवन में पाने की कुछ इच्छा ही नही होंगी । मनुष्य की सबसे बड़ी इच्छा होती है – और जीना ,  वह भी समाप्त हो जाएगी । आपकी आपके जीवन के प्रति भी आसक्ति नहीं होगी । आप अपने जीवन में मृत्यु का वरण करने के लिए सदैव तैयार ही रहेंगे । मृत्यु का भी डर समाप्त हो जाएगा । जीवन में  मनुष्य का सबसे बड़ा डर मृत्यु का होता है , वह भी समाप्त हो जाएगा । आप उस डर से भी मुक्त हो जाएँगे ।

आप भाव से भर जाएँगे । कभी कोई आपको थोड़ी सी भी सहायता करेगा , आप उसके आभारी हो जाएँगे । आप उसको बार-बार धन्यवाद देंगे । आप जीवन की अच्छी और बुरी घटनाओं को अलिप्त रहकर देखेंगे । दोनों घटनाओं से आप प्रभावित नही होंगे । आपके भीतर सभी के लिए सदभावना ही होगी । सामनेवाला आपका बुरा कर रहा होगा तो भी आप उसे क्षमा कर देंगे । आपके भीतर उसके प्रति भी सदभावना रहेगी क्योंकि यह आपका स्वभाव हो जाएगा ।

जब जीवन में ऐसी स्थिति मिल जाए तो समझना कि आप 'मुक्त' हो गए है । लेकिन ऐसी स्थिति मिल जाने पर खराब चित्त के लोगों से आपको एक बदबू भी आएगी और यही कारण है कि खराब चित्त के लोगों से आपको तकलीफ होगी । लेकिन उन खराब लोगों से , खराब परिस्थितियों से बचने का उपाय आप निकाल ही लेंगे I आप अपने पवित्र चित्त से एक ' मोक्ष विमान ' का निर्माण करेंगे । आप जब चाहेंगे , उस विमान में जाकर बैठ सकेंगे । आपकों बाहरी संसार का वातावरण कितना भी प्रतिकूल लगेगा , आपके इस विमान के भीतर का वातावरण सदा एक जैसा ही , ' अनुकूल ' ही बना रहेगा । यह एक प्रकार का आपके चित्त से निर्मित आपका घर ही होगा I और यह एक विमान जैसा होगा । यह सदैव आपकी इच्छानुसार चलेगा । आप इसे लेकर दुनिया के किसी भी कोने में जा सकते हो । आसपास का वातावरण ,  भौगोलिक परिस्थिति के कारण भले ही बदल जाए पर आपके विमान के भीतरी वातावरण पर इसका कोई प्रभाव नहीं होगा । इस विमान पर आपका संपूर्ण नियंत्रण होगा । आप जब चाहें , उड़ान भर सकते है और आप जब तक चाहें , उसमें बैठ सकते हैं । यह एक प्रकार का सुरक्षाकवच है क्योकि ' मोक्ष की स्थिति ' ध्यान की सर्वोच्च अवस्था है । यह स्थिति पाकर जीना केवल दूसरों के लिए हो सकता है क्योंकि आपके जीवन का ' उद्देश्य ' ही समाप्त हो गया है । इसलिए सदैव सभी का भला चाहते है , सभी के प्रति आपके भीतर सद्भावना रहती है । ध्यान की यह सर्वोच्च अवस्था ' समर्पण ' के प्रत्येक साधक को मिले , यह प्रभु से प्राथना है क्योंकि इसी उद्देश्य से मेरे गुरुओं ने मुझे हिमालय से भेजा था । आप सभी को खूब-खूब आशीर्वाद........

- आपका बाबा स्वामी

- मधु चैतन्य - २०१२

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