आत्मा सदैव अकेली ही सफर करती रहती है |

प्रत्येक आत्मा इस जगत में अकेली ही आती है और इसी प्रकार अकेली ही सफर करती है | आत्मा सदैव अकेली ही सफर करती रहती है | वह कभी किसी के साथ नहीं होती है | जो साथ होता है, वह शरीर होता है | शरीर के ही सब भोग हैं , शरीर के ही सब रिश्ते हैं | शरीर भी नाशवान है | इसीलिए इस शरीर के रिश्ते भी नाशवान होते हैं | कभी नए रिश्ते बनते हैं, कभी पुराने रिश्ते छूट जाते हैं | कई पुराने रिश्तेदार साथ छोड़कर  आगे चले जाते हैं | कई नए रिश्तेदार जीवन में आ जाते हैं | सब रिश्तों की धर्मशाला चलती ही रहती है | शरीर से बनाए गए रिश्ते शरीर के समान ही नाशवान होते हैं | मनुष्य के सब रिश्ते अशाश्वत होते हैं | आत्मा का एक ही रिश्ता शाश्वत होता है, वह रिश्ता है परमात्मा का |क्योंकि परमात्मा से ही आत्मा का निर्माण हुआ है |

हिमालय समर्पण योग -१
पृष्ठ-१६७

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