प्रत्येक मनुष्य की सर्वोच्च,शुद्धतम इच्छा,जो कि मोक्ष पाना है
उस दिन लग रहा था--प्रत्येक मनुष्य की सर्वोच्च,शुद्धतम इच्छा,जो कि मोक्ष पाना है, वह पूर्ण हो, ऐसी शुध्द इच्छा रखना तो सबसे बड़ी इच्छा है। इससे अधिक तो कुछ हो ही नहीं सकता है। मोक्ष देना तो केवल परमात्मा का कार्य है।तो यह देने की इच्छा मुझे अनायास ही परमात्मा का माध्यम बना देगी।और इसी बात को जानकर प्रत्येक गुरु ने अपना सर्वस्व इस शरीररूपी बर्तन में डाला है।प्रत्येक मनुष्य के जन्म का उद्देश इस मोक्ष देने की इच्छा से पूर्ण होगा। बाकी सारी इच्छाएँ, उसकी इच्छाएँ नहीं,उसके शरीर की आवश्यकताएँ हैं।अब यह बात कितनी आत्माएँ समझ पाएँगी और कितनी आत्माएँ शारीरिक आवश्यकताओं को छोड़कर अपनी शुध्द इच्छा को व्यक्त करेंगी,यह सब उनकी आध्यात्मिक स्थिति पर निर्भर करेगा। यह उनका अपना,निजी क्षेत्र होगा,मुझे अपना कार्य करना होगा। गंगा नदी अपने स्थान पर बहती रहती है। जिसको प्यास लगती है,वह घाट पर जाकर पी लेता है। महत्वपूर्ण है प्यास,वह न लगी तो गंगा का पानी भी बेकार लगेगा। प्रश्न प्यास का है,उसका लगना तो शरीर के ऊपर निर्भर है,वह शरीर का क्षेत्र है। वैसे ही,मोक्ष की इच्छा जागृत होना आत्मा की सर्वोच्च स्थिति है,उस परम स्थिति में जाकर ही वह मोक्ष की इच्छा करती है। और वह स्थिति आने पर ही उसे मोक्ष की स्थिति उसके जीवन में प्राप्त होती है।सबकुछ प्यास लगने पर ही है। प्यास लगने पर ही पानी याद आता है। मोक्ष की स्थिति बनने पर ही आत्मा को मोक्ष याद आता है और मोक्ष पाने की इच्छा होती है।...
हि.स.यो-४
पु-४२५
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