आपका रूप क्या है ?
आपका रूप क्या है ? मैंने कहा , ठीक कल सुबह उठकर जब मैं ये हॉल में ध्यान करते बैठता हूँ , तब देखना। दूसरे दिन सुबह ४ बजे उठकर ध्यान करते बैठा था। जैसा कि नियमित रूप से बैठता ही था। यह ध्यान का समय मेरा अपना होता था। इतनी सुबह कोई उठता ही नहीं था। तो वातावरण में भी कोई विचार नहीं होते थे और ऐसा वातावरण से ध्यान में जाने में आसानी होती थी। जब ध्यान करके उठा तो देखा दरवाजे के बाहर ही पत्नी भी ध्यान करते बैठी थी। वह बाद में उठी तो मैंने पूछा , क्या आज का अनुभव रहा ? तो वो बोली, जब मैं देखने को आई , तब लगा जैसे लाखों जुगनू एक साथ चमके हों और वे सारे आपके शरीर के आसपास ही धूम रहे हों। और बाद में वह जुगनू का प्रकाश इतना अधिक हो गया कि बाद में शरीर दिखना भी बंद हो गया! और बाद में शरीर दिख ही नहीं रहा था। आप पूर्णतः अद्श्य ही हो गए थे। बस उसमें कहीं भी नजर ही नहीं आ रहे थे। वह प्रकाश साँस की गति से बढ़ता और कम होता था। मानो साँस की गति से उस प्रकाशपुंज का कोई संबंध हो, ऐसा लग रहा था। और वातावरण एकदम ठण्डा हो गया था। आसपास के वातावरण से यहाँ के स्थान की ठण्डक अधिक महसूस हो रही थी। उन जुगनुओं के समूह के प्रकाश में अपना एक अलग ही आकर्षण था।
हि. का.स.योग भाग ६ - ७७
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