आत्मा का आनंद
मेरे में यह भाव था की यह आत्मा का आनंद विश्व के प्रत्तेक मनुष्य को प्राप्त् हो जो इसे लेना चाहे । फिर चाहे वह मनुष्य किसी भी देश का , धर्म का , जाती का , भाषा का क्यूँ न हो सभी मनुष्य को इस आनंद की अनुभूति समान रूप से हो ।मेरी आत्मा ने यह शरीर केवल यह एक ही इच्छा से धारण किया था और मेरी आत्मा मुझे बचपन से ही इस बात का एहसास कराती थी की तुमने यह शरीर क्यों धारण किया है , तुम केवल शरीर नही हो तुम "एक पवित्र आत्मा हो /तुम एक शुद्ध आत्मा हो". .. .
पूज्य गुरुमाऊली
पवित्र आत्मा
2/2/2017
गुरुवार
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