मनुष्य अपनी समस्याओं के कारण गुरु की शरण में आता है,

मानवसमाज में आए प्रत्येक गुरु को एक ही अनुभव आया है कि मनुष्य अपनी समस्याओं के कारण गुरु की शरण में आता है, अपने जीवन के संकट के कारण गुरु की शरण में आता है | और गुरु जानता है कि यह संकट निमित है, उसे उसके पास लीने के लिए , वास्तव में शिष्य का आत्मोत्थान का ही समय आ गया है | फिर गुरु के सान्निध्य में, शिष्य का चित समस्या से हटकर कब परमात्मा की ओर चला जाता है, यह शिष्य को पता नहीं चलता है | शिष्य के जीवन में आए संकट ही ' सेतु' बन जाते हैं , भवसागर को पार करने के लिए | इसलिए मनुष्य को जीवन में आए संकटो से घबरना नहीं चाहिए | उन संकटों को प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिए | परमात्मा ने हमें जीवन में इतना कुछ दिया है, इसके लिए हमें परमात्मा को धन्यवाद देना चाहिए | जो दिया है, उसके लिए धन्यवाद और जो नहीं दिया है, वह इतना छोटा है, उसकी क्या शिकायत करें ! कई बार जीवन में आए संकट ही मनुष्य को अहंकाररहित करते हैं | मनुष्य के अहंकार के कारण जीवन में आए संकट को मनुष्य प्रथम प्रयत्न करके दूर करने का प्रयास करता है | फिर प्रार्थना करके संकट को दूर करने का प्रयास करता है | और बाद में जब प्रार्थना भी काम नहीं आती है तो भीख मीँगने लगता है, गिड़गिड़ाने लगता है | यह उसका गिड़गिड़ाना ही उसके अहंकार को तोड़ता है और अहंकार दूर हो जाने पर वह रोने लगता है | अहंकार शरीर से निकलते समय बड़ा कष्ट देता है, शिष्य को बहुत रुलाता है | क्योंकि रोने से ही शिष्य की आत्मशुध्धि होती है , आत्मा का मैल साफ होता है, इसीलिए गुरु के सानिध्य में शिष्य रोता हुआ रहता है |
हि.स.यो-१ जय बाबा स्वामी

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