खुद नियमित ध्यान करके आप एक सूक्ष्म सेवा ही कर रहे हो,

  • खुद नियमित ध्यान करके आप एक सूक्ष्म सेवा ही कर रहे हो, गुरुकार्य ही कर रहे हो कि आप आपकी स्थिती अच्छि कर रहे हो| आप एक अच्छा वातावरण निर्माण कर रहे हो, एक अच्छि सामूहिकता निर्माण कर रहे हो, तो अपने आपको बॅलन्स करके रखना भी सामुहिकता के लीये एक बहुत बडा योगदान है|
परमपूज्य गुरुदेव,
चैतन्य महोत्सव,2014
  • "  आपकी इस ध्यान पद्धति मे सबकुछ आसान है,  पर इसमें बने रहना ही कठिन है। इसका पहला दोष है कि इसमें साधक को आहंकार आता है। अहंकार इसलिए आता है क्योंकि वह ध्यान के माध्यम से सामूहिक शक्ति के साथ जुड जाता है और फिर एक साधक में हजारों लोगों का बल आ जाता है। और फिर जब वह गुरुकार्य करता है तो,  वह बडी आसानी से हो जाता है और कार्य संपन्न हो जाने पर उसे अहंकार आ जाता है कि उसने वह कार्य किया !
  • एक मनुष्य को हजारों लोगों की शक्ति दी जाए तो ऐसा होना स्वाभाविक है। इसी अहंकार से साधक सामूहिकता से बाहर हो जाता है और ध्यान छूट जाता है। क्योंकि अहंकार उत्पन्न होने पर वह असंतुलित हो जाता है और वह जब असंतुलित हो गया तो वह ध्यान कैसे करेगा ? उसका ध्यान तो छूट ही जाएगा। यह इस ध्यान की पद्धति का बडा दोष हैं।

हि.स.योग.४, पेज. २८0.
  • " अहंकार शरीर का सूक्ष्म भाव है और वह कोई भी क्रिया करने पर प्रगट हो ही जाता है। इसलिए कार्य की क्रिया पर नियंत्रण रखो।  जब अहंकार आता है  तो   " यह कार्य मैं ही कर रहा हूँ,  मैंने नहीं किया तो यह कार्य नहीं होग,"  ऐसा भाव आता है। यानी गुरुकार्य के प्रति अटैजमेन्ट ( आसक्ति ) हो आता है।
  • गुरुकार्य के प्रति जागरुक रहना चाहिए; अपने स्तर पर जितना अच्छा कर सकते हैं, करें। लेकिन गुरुकार्य किसी को दिखाने के लिए न किया जाए और न ही किए गए कार्य का प्रदर्शन किया जाए,  वरना वह अहंकार का ही निर्माण करेगा। गुरुकार्य अपेक्षा से न करें क्योंकि अपेक्षा बाद में  जीवन में निराशा भर देती है।  गुरुकार्य,  वास्तव में , किया नहीं जाता, हो जाता हैं !"

हि.स.योग.४, पेज.२८१.

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