दो साधकों की लड़ाई का परिणाम बहुत बुरा होता है ।
*गुरुमा!स्वामीजी कहते हैं कि दो साधकों की लड़ाई का परिणाम बहुत बुरा होता है । माँ, किसी साधक से अनबन होना या मतभेद होना आम बात है,तो किसी एक साधक से वैरभाव हो जाए तो क्या होगा?*
प्रिय साधक,
अनेक आशीर्वाद,जय बाबा स्वामी!
बेटा!आप सही कह रहे हैं कि दो साधको में लड़ाई होना,मतभेद होना आम बात है जब तक रूठना...मनाना चल रहा है।जब रूठना,मनाना बंद हो जाता है तब समझ लीजिए कि तब मतभेद मनभेद में तब्दील हो चूका है।यही मनभेद आगे चलकर वैरभाव में तब्दील हो जाता है।
गुरुदेव ने प्रत्येक साधक में गुरुशक्तियों के साधना संस्कार का एक बीज स्थापित किया है।जब साधक नियमित ध्यान साधना करता है,तब वह गुरुशक्तियों के सूक्ष्म स्वरुप ही उस साधक को संस्कारित करता है,साधक को सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
जब दो साधक आपस में वैरभाव रखते हैं तब उन दोनों के भीतर स्थित गुरुशक्तियाँ आपस में नहीं लड़ सकती क्योंकि वे एक ही हैं तथा सकारात्मक होती हैं।वे साधक को वैरभाव समाप्त करने के लिए प्रेरित करती हैं।यदि साधक गुरुशक्तियों से जुड़ा हुआ होता है तो वह वैरभाव समाप्त करने के प्रयास करता है। किंतु वे साधक यदि वैरभाव समाप्त नहीं करते तो गुरुशक्तियाँ साधकों का साथ छोड़ देती हैं क्योंकि वे एक ही होती हैं तो वे स्वयं के विरुद्ध कैसे लड़ सकती हैं?
आपस में वैरभाव रखनें से दोनों साधक अपनी आध्यात्मिक स्थिति खो देते हैं। धीरे धीरे उनका ध्यान छूटता है और फिर समर्पण ध्यान परिवार से भी वे कब दूर हो जाते हैं,पता भी नहीं चलता।अंतः वैरभाव न रखें । स्मरण रहे,जब तक साधक के मन में वैरभाव रहता है,उसका *आध्यात्मिक* विकास हो ही नहीं सकता।
आपका चित वैरभाव से मुक्त रहे तथा आपके भीतर गुरुशक्तियों का स्वरुप विकसित होता रहे तथा आपकी आध्यात्मिक उन्नति हो,यही गुरु चरणों में प्राथना करती हूँ।नमस्कार, जय बाबा स्वामी!
आपकी,
*गुरुमाँ*
मधुचैतन्य| मई-जून,२०१७
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