_* समाधान को बाहर खोजोगे,भटकोगे तो जीवन में समाधान बाहर कभी नहि मिलेगा। और समाधान को बाहर नहि खोजोगे और भीतर जाओगे तो समाधान की बरसात होगी। *_ _*HSY 1 pg 246*_
Whatever sadhana(prolonged Meditation) that Guru does when in physical body, its energy exist even after the death of physical body and a subtle body is created from it. Normally this happens when a Guru departs from the physical body, may be 25 - 30 years of the physical body's death this subtle body will be formed. There are many subtle bodies in the universe but to give any form to the subtle body you need a connection in the physical form. In past these two bodies never exist together. Physical body has got its limitation and it cannot go beyond this limitation. Subtle body can exist in any part of the world and anyone can be connected to it. With the progress in Guru Element for the first time it has happened that, the physical and subtle body of a Satguru exist together in the same time. This is an advance stage of Guru Element, Guru Element cannot be bound to any body and it's beyond the limitation of body. It only takes different body at different tim
एक रात को आश्रम के बगीचे में ध्यान करते समय मुझे अनुभव हुआ कि मेरे मस्तिष्क पर कुछ गोल-गोल घूम रहा था । हिंडोले में बैठकर जैसा अनुभव होता है , वैसा ही ५-७ मिनट तक हुआ । फिर मैंने भयभीत होकर अपनी आँखों खोल दी और सब कुछ एकदम से स्थिर हो गया । जैन मुनि शिबिर में जब उस अनुभव के बारे में स्वामीजी को बताया तो उन्होंने कहा कि सहस्त्रार चक्र पर कुण्डलिनी की हलचल होने से ऐसा हुआ था । तब लगा कि आँखें न खोली होती तो अच्छा था किंतु बाद में सोचने पर एहसास हुआ कि कदाचित मेरी योग्यता उतनी ही थी इसीलिए स्वामीजी ने उतनी ही अनुभूति कराई और योग्यता के अनुसार अनुभूति भी बढ़ेगी । श्री प्रशांत मुनि मधुचैतन्य Sep-Oct , 2017 Pg.42
आपका चित्त खाने में से पूर्ण ही निकल जाए , यही इस यात्रा का उदेश होता है। कोई बात प्रथम विचार में आती है। अधिक बार विचार में आने से चित्त में आती है और चित्त में आने से कूती शरीर से होने की संभावना होती है । यहाँ कोई विशिष्ट व्यंजन खाने का विरिध नहीं है। लेकिन यही व्यंजन खाने को चाहिए , यह बार - बार सोचने से विरिध है। क्योंकि आप जब खाते हैं , तब तो केवल खाने की क्रिया होती है लेकिन जब आप सोचते हैं तो चित्त दूषित होता है। पवित्र , शुद्ध चित्त से ही आध्यात्मिक कार्य की शुरुआत की जा सकती है। समर्पण ध्यान एक ध्यान की पद्धति है जिसमें परमात्मा के माध्यम के माध्यम से परमात्मा रूपी विश्वचेतना से ध्यान के द्धारा अपने-आपको जोड़ा जाता है। दूसरा , यह पद्धति दो बातें पर ही निर्भर करती है। एक तो सामूहिकता। यह पद्धति से ध्यान में प्रगति करने के लिए ध्यान सामुहिकता में करना आवश्यक होता है। और दूसरा , ध्यान नियमित करना आवश्यक होता है। कोई भी अभ्यास हो , कोई भी साधना हो , नियमितता तो सदैव आवश्यक होती ही है। प्रथम हमें हमारे शरीर को उस ध्यान की पद्धति के लिए तैयार करना पड़ता है। क्योंकि प्रथम हमारे शरीर
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