अच्छा दूसरा ना, मेरे नाम पे ठोकना चालू मत करो।नहीं,वो मेरेको तुम्हारी खूब कम्प्लेंट(फरियाद) आती है। तुम्हारे मन में जो कुछ रहता है ना वो बोल देते है 'स्वामीजी ने कहा है!गुरुमां ने कहा है!" अरे! माने, मेरा क्या कहना है, तुम बोलो ना 'ये मैंने कहा है, ये मेरेको लगता है'। तुम इतने डरपोक हो क़ि तुम तुम्हारा नाम बचाना चाहते हो? ऐसा कायको बोलते हो? माने, जैसे तुम्हारे एक जेब में स्वामीजी पडे हो,एक जेब में गुरुमाँ पड़ी है! इधर से निकाला- ये ले....,स्वामीजी! ये ले.....,गुरुमाँ निकाली!(साधक हँसते हे) माने एकदम ऐसे दो कौड़ी का मत बनाओ गुरु को। खबरदार किसी ने मेरे नाम पे कुछ बोला तो!(बाद में, पूज्य स्वामीजी हँसते हे।) नहीं, दूसरा ना में साधकों को भी बोल रहा हूँ, पूछो सेंटर आचार्य को स्वामीजी ने ये कौन से प्रवचन में कहा है? कौन से किताब में कहा है? तू तेरे मन की बाते उनके नाम पे मत ठोको। तो कहने का मतलब, ऐसा ये ठोका ठोकी बंद करो।तुम ऐसा मत करो। दूसरा, तुम्हारा भी रिस्पेक्ट कम होता है। वो तो समझ जाता है ना कि ये अपने मन की बात स्वामीजी के नाम पे ठोक रहा है। और दूसरा, तुम भी पाप के भागीदार हो कि गुरु की एकदम ईक्ली(अपमान) कर रहे हो तुम। गुरु माने इतने सस्ते कर रहे हो.....,गुरु का तुमको अगर रिस्पेक्ट हे, तो उनके  नाम पे तुम कहना बंध कर दो कि स्वामीजी ने ऐसा कहा है.....गुरुमाँ ने कहा है...और दूसरा कहा है तो उनको दिखाओ ना कि स्वामीजी ने ये पुस्तक में ये कहा है। ऐसा बताओ वो चलेगा, लेकिन तुम तुम्हारे मन से, तुम्हारे मन की बाते उनके नाम पे मत ठोको।
(मधुचैतन्य नवेम्बर-दिसंबर २०१६ page no.23)

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