अंधकार से उषा तक का सफर आत्मा के प्रकाश के बिना संभव नही ।
曆曆
अंधकार से उषा तक का सफर आत्मा के प्रकाश के बिना संभव नही । आत्मा की बाती ध्यान से प्रकाशित रहती है । ध्यान के लिए वीचारशून्न्यता की अवस्था आवश्यक है और उसके लिए समस्त भावों का समर्पण आवश्यक है । विचार या तो भविष्य की चिंता के कारण आते है या भूतकाल के किए कर्मों के कारण आते है । कर्म जो हमने किए और वें कर्म जो औरों ने हमारे लिए किए , वें ही विचारों को जन्म देते है । यदि हम अपने द्वारा किए गए सभी कर्म समर्पित कर सके तथा मन की सभी भावों को समर्पित कर पाए तभी विचारशून्य अवस्था प्राप्त हो सकेगी । तभी ध्यान कर पाएँगे या कहे ध्यान लगेगा । और नियमित ध्यान से जीवन की उषा -संध्या का भेद मिट जाएगा ।...
********
।।गुरुमाँ ।।
पुष्प २/ ४६
********
।।जय बाबा स्वामी ।।
********
।।गुरुमाँ ।।
पुष्प २/ ४६
********
।।जय बाबा स्वामी ।।
Comments
Post a Comment