आत्मसंगत'से ही मोक्ष की स्थिती पाना संभव है।
यह सब हजारो साधको का अध्ययन करने के बाद कह रह हूँ। कई साधको को देखता हूँ कि "आत्मसाक्षात्कार" को पाकर भी जीवनभर न समझ सके लेकिन *अपनी मृत्यु के पूर्व 'समझ' जाते हैं कि उन्होंने जीवन में क्या था*और 'आत्मसाक्षात्कार' पाकर भी 'जीवन व्यर्थ' ही गवाँया।
लेकिन उस मृत्यु के समय 'पछतावा' करने के अलावा हाथ में कुछ नहीं रहता है। और यह केवल इसलीए होता है क्योंकी शरीरभाव को अधिक महत्व दीया। और शरीरभाव कब समाप्त हुआ? जब शरीर ही समाप्त हो गया! तब मुजे ही याद करते हैं, रोते हैं, गिड़गिडाते हैं। तब मैं भी क्या कर सकता हूँ? *अब अगले जनम में यह गलती मत दोहराना, बस यही कहता हूँ।*
कल यही बात आपको न करना पडे, इसलीए कहता हूँ - 'आत्मसंगत' करो। केवल और केवल 'आत्मसंगत'से ही मोक्ष की स्थिती पाना संभव है। यह मैं मेरे ६० सालों के अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ। आप किसी के साथ रहो या ना रहो, अपनी आत्मा के साथ 'आधा घण्टा' अवश्य रहो।
श्री बाबास्वामी
'सद्गुरू के ह्रदय से'
पृष्ठ क्रमांक २९,३०
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