भुतकाल भी छिपकली की अधकटी पूँछ जैसा ही होता है

" भुतकाल भी छिपकली की अधकटी पूँछ जैसा ही होता है ।  छिपकली के जिवन मेँ कभी भी अधकटी पूँछ उससे जुड़ नहीँ सकती है , फिर भी छिपकली मोह के कारण उसे लिए ही दीवार के ऊपर चढ़ते रहती है । और उसकी अधकटी पुँछ के कारण वह अपनी ऊपर चढ़ने की गति को भी नही बढ़ा पाती है । वास्तव मेँ , अगर वह यह जान ले कि वह अधकटी पुँछ उसके कुछ काम की नही , उलटा वह उसकी प्रगति मेँ बाधक है और वह उसे छोड़ देने का निर्णय ले ले तो उस छिपकली की प्रगति अधिक तेजी से हो सकेगी ।
ठीक उसी प्रकार , मनुष्य भी अपने भूतकाल के व्यक्तियोँ को , भूतकाल की घटनाओँ को अपनी छाती से लगाए घूमते रहता है जबकि उसे भी मालूम है कि जो समय बीत गया , वह वापस आनेवाला नही है । फिर भी मनुष्य उस भूतकाल  को छोड़ता नही है । लेकिन अगर कोई गुरु उसे आत्मज्ञान करा देँ और उसे जागृत कर देँ तो उसे उस बात का एहसास हो जाएगा और उसका अटेचमेँट भूतकाल से छूट जाएगा और वह भूतकाल को छोड़ देगा और वर्तमानकाल मेँ रहने से उस मनुष्य की प्रगति होनी प्रारंभ हो जाएगी । इसलिए आवश्यक है कि मनष्य अपनी आध्यात्मिक प्रगति के लिए भूतकाल को छोड़ दे क्योँकि वह वर्तमानकाल की प्रगति मेँ बाधक है ।"
-प.पु.श्री शिवकृपानंद स्वामिजी
From :
हिमालय का समर्पण योग - 4

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