आत्मा के प्रकाश से ही अंतर का अंधकार दूर हो सकता है ।
आत्मा के प्रकाश से ही अंतर का अंधकार दूर हो सकता है । अंधकार से उषा तक का सफर आत्मा के प्रकाश के बिना संभव नही । आत्मा की बाती ध्यान से प्रकाशित रहती है । ध्यान के लिए विचारश्यून्यता की अवस्था आवश्यक है और उसके लिए समस्त भावों का समर्पण आवश्यक है । यदि हम अपने द्वारा किए गए सभी कर्म समर्पित कर सके तथा मन के सभी भावों को समर्पित कर पाएँ तभी विचारश्यून्य अवस्था प्राप्त हो सकेगी । तभी ध्यान कर पाएँगे या कहे ध्यान लगेगा । और नियमित ध्यान से जीवन की उषा -संध्या का भेद मिट जाएगा ।
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बहू वंदनिय पूज्या
"गुरु माँ "
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"' माँ "' पुष्प [ २ ]
पृष्ठ [ ४६ ]
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