मैं एक पवित्र आत्मा हूँ

" *मैं एक पवित्र आत्मा हूँ* " , यह मानना हमारा ध्यान प्रथम हमारी आत्मा की ओर लेकर जाएगा | आत्मा पर ध्यान जाएगा तो ही अनुभूति का बोध होगा | और अनुभूति पर ध्यान जाएगा तो शरीर को भी प्रसन्नता महसूस होगी, शांति महसूस होगी, तनावरहित लगेगा | और धीरे-धीरे इस क्रिया में शरीर भी अपना योगदान देना प्रारंभ कर देगा | और जैसे-जैसे इस क्रिया में शरीर सहभागी होगा, वैसे-वैसे मनुष्य का ध्यान शरीर के ऊपर से हटेगा | और जब शरीर पर ही ध्यान नहीं है तो शरीर की समस्याओं पर ध्यान कम होना प्रारंभ होगा | और जब समस्याओं पर मनुष्य अपना चित नहीं जा लेगा तो समस्याओं का आना स्वयं ही बंद हो जाएगा | समस्यारूपी काँटे के झाड़ पर जब हम हम चितरूपी खाद डालते हैं, तभी काँटे का झाड़ बढ़ता है |.       हि.स.यो-४.    पृष्ठ-१०६

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